• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
 
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | مقالات شرعية   دراسات شرعية   نوازل وشبهات   منبر الجمعة   روافد   من ثمرات المواقع  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    نهاية عام وبداية عام (خطبة)
    عبدالعزيز أبو يوسف
  •  
    التواصل العلمي الموضوعي بين الصحابة: عائشة وأبو ...
    محفوظ أحمد السلهتي
  •  
    راحة القلب في ترك ما لا يعنيك
    عبدالله بن إبراهيم الحضريتي
  •  
    الإلحاد
    د. عالية حسن عمر العمودي
  •  
    يا أيها الذين آمنوا أوفوا بالعقود (خطبة)
    د. محمود بن أحمد الدوسري
  •  
    الإسلام يدعو إلى العدل
    الشيخ ندا أبو أحمد
  •  
    من مائدة التفسير سورة قريش
    عبدالرحمن عبدالله الشريف
  •  
    عناية النبي - صلى الله عليه وسلم- بحفظ القرآن ...
    الشيخ أ. د. عرفة بن طنطاوي
  •  
    خطبة: فوائد الأذكار لأولادنا
    عدنان بن سلمان الدريويش
  •  
    إمامة الطفل بالكبار
    د. عبدالعزيز بن سعد الدغيثر
  •  
    القران الكريم في أيدينا، فليكن في القلوب
    أ. د. فؤاد محمد موسى
  •  
    مقام العبودية الحقة (خطبة)
    د. عبدالرزاق السيد
  •  
    الصدقات والطاعات سبب السعادة في الدنيا والآخرة
    د. خالد بن محمود بن عبدالعزيز الجهني
  •  
    الخشوع المتخيل! الخشوع بين الأسطورة والواقع
    شهاب أحمد بن قرضي
  •  
    الانقياد لأوامر الشرع (خطبة)
    د. غازي بن طامي بن حماد الحكمي
  •  
    الوقت في الكتاب والسنة ومكانته وحفظه وإدارته ...
    الشيخ عبدالرحمن بن سعد الشثري
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / خطب بلغات أجنبية
علامة باركود

الدنيا بين الزاد والزهد (خطبة) (باللغة الهندية)

الدنيا بين الزاد والزهد (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 22/10/2022 ميلادي - 27/3/1444 هجري

الزيارات: 5610

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

दुनिया संग्रह करने एवं संतुष्टि के मध्‍य


प्रशंसाओं के पश्‍चात

मैं स्‍वयं को और आप को तक्‍़वा(धर्मनिष्‍ठा)अपनाने की वसीयत करता हूँ क्‍योंकि तक्‍़वा दुनिया एवं आखिरत में मुक्ति का माध्‍यम है:


﴿ لِّلَّذِينَ أَحْسَنُوا فِي هَٰذِهِ الدُّنْيَا حَسَنَةٌ ۚ وَلَدَارُ الْآخِرَةِ خَيْرٌ ۚ وَلَنِعْمَ دَارُ الْمُتَّقِينَ ﴾ [النحل: 30].

अर्थात:उन के लिए जिन्‍होंने इस लोक में सदाचार किये बड़ी भलाई है,और वास्‍तव में परलोक का घर(स्‍वर्ग)अति उत्‍तम है,और आज्ञाकारियों का आवास कितना अच्‍छा है।


ऐ रह़मान के बंदो रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम की एक ऐसी विशेषता जिसे आप ने अपने जीवन में व्‍यावहारिक रूप से अपनाया,और अपने सह़ाबा को इसकी रूची दिलाई,अत: सह़ाबा ने इस(विशेषता)को सीखा,इसके विषय में अनेक आयतें नाजि़ल हुई हैं,जबकि आज हमारे जीवन में यह विशेषता दुर्बल हो चुकी है,जबकि यह ईर्ष्‍या को दूर करती और संतुष्टि एवं सौभाग्‍य को लाती है,अवैध कमाई से आप को दूर रखती और आप को अल्‍लाह एवं लोगों का प्रेम प्रदान करती है,जल्‍द ही इसके नैतिक गुण का उल्‍लेख आएगा।नि:संदेह यह दुनिया से अनिच्‍छा की विशेषता है।


ऐ नमाजि़यो अल्‍लाह ने अपने बंदों को पैदा किया और कुशलताओं,योग्‍यताओंएवं रोजि़यों को विभिन्‍न बनाया:

﴿ لِيَتَّخِذَ بَعْضُهُم بَعْضاً سُخْرِيّاً﴾ [الزخرف: 32]

अर्थात:ता‍कि एक-दूसरे से सेवा कार्य लें।


ज़ोह्द(वैराग्‍य)का अर्थ यह कदापि नहीं है कि अ़मल एवं व्‍यापार को छोड़ दिया जाए,बल्कि बंदों के प्रार्थना करने का आदेश दिया गया,साथ ही उन्‍हें भूमि का उत्‍तराधिकारी बनाया,सत्‍य हस्‍ती ने मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने वाले मोसल्लियों(नमाजि़यों)की प्रशंसा की है:

﴿ لَّا تُلْهِيهِمْ تِجَارَةٌ وَلَا بَيْعٌ عَن ذِكْرِ اللَّهِ وَإِقَامِ الصَّلَاةِ وَإِيتَاء الزَّكَاةِ ﴾ [النور: 37]

अर्थात:जिन्‍हें अचेत नहीं करता व्‍यापार तथा सौदा अल्‍लाह के स्‍मरण तथा नमाज़ की स्‍थापना करने और ज़कात देने से।


अल्‍लाह तआ़ला ने कुछ कारणों से मु‍सलमानों के लिए नमाज़ की कि़राअत कमी की,जिन में से एक कारण व्‍यापार भी है:

﴿ عَلِمَ أَن سَيَكُونُ مِنكُم مَّرْضَى وَآخَرُونَ يَضْرِبُونَ فِي الْأَرْضِ يَبْتَغُونَ مِن فَضْلِ اللَّهِ وَآخَرُونَ يُقَاتِلُونَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ فَاقْرَؤُوا مَا تَيَسَّرَ مِنْهُ ﴾[المزمل: 20]

अर्थात:वह जानता है कि तुम में से कुछ रोगी होंगे और कुछ दूसरे यात्रा करेंगे धरती में खोज करते हुये अल्‍लाह के अनुग्रह(जीविका)की,और कुछ दूसरे युद्ध करेंगे अल्‍लाह की राह में,अत: पढ़ो जितना सरल हो उस में से।


ऐ ईमानी भा‍इयो नेक बंदा के लिए अच्‍छा धन किया ही अच्‍छी चीज़ है,क़ुरान में आया है:

﴿ وَابْتَغِ فِيمَا آتَاكَ اللَّهُ الدَّارَ الْآخِرَةَ ﴾ [القصص: 77]

अर्थात:तथा खोज कर उस से जो दिया है अल्‍लाह ने तुझे आखिरत(परलोक)का घर।


जिस बंदे को तौफीक़(अल्‍लाह का कृपा)प्राप्‍त हो वह धन के फितने से डरता हैचाहे यह फितना धन को इकट्ठा करने के रूप में हो अथवा संग्रह करने के रूप में:

﴿ وَاعْلَمُواْ أَنَّمَا أَمْوَالُكُمْ وَأَوْلاَدُكُمْ فِتْنَةٌ وَأَنَّ اللّهَ عِندَهُ أَجْرٌ عَظِيمٌ ﴾ [الأنفال: 28]

अर्थात:तथा जान लो कि तुम्‍हारा धन और तुम्‍हारा संतान एक परीक्षा है,तथा यह कि अल्‍लाह के पास बड़ा प्रतिफल है।


ऐ अल्‍लाह के बंदो रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम कथन एवं कार्य दोनों रूप में ज़ोह्द(वैराग्‍य)के पैकर थे,जाबिर रज़ीअल्‍लाहु अंहु से वर्णित है:अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम(मदीना के)किसी उूंचे ओर से प्रवश करते हुए बाजार से गुजरे,लोग आप के बगल में (आप के साथ चल रहे)थ।आप तुच्छ कानों वाले मरे हुए मेमने के पास से गुजरे,आप ने उसे कान से पकड़ कर उठाया,फिर फरमाया:तुम में से कौन इसे दिरहम के बदले लेना पसंद करेगा तो उन्‍हों(सह़ाबा)ने कहा:हमें यह किसी भी चीज़ के बदले लेना पसंद नहीं,हम इसे ले कर क्‍या करेंगे आप ने फरमाया: (फिर)क्‍या तुम पसंद करते हो कि यह तुम्‍हें मिल जाए उन्‍हों(सह़ाबा)ने कहा:अल्‍लाह की क़सम यदि यह जीवित होता तो भी इस में नुक्‍स था,क्‍योंकि(एक तो)यह तुच्छ से कानों वाला है।फिर जब वह मरा हुआ है तो किस काम का उस पर आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने फरमाया: अल्‍लाह की क़सम जितना तुम्‍हारे लिए यह तुच्छ है अल्‍लाह के लिए दुनिया इससे भी अधिक तुच्छ है ।


(इस ह़दीस को इमाम मुस्लिम ने वर्णित किया है)।


सत्‍य हस्‍ती ने फरमाया:

﴿ وَما الْحَيَاةُ الدُّنْيَا إِلاَّ مَتَاعُ الْغُرُورِ ﴾ [آل عمران: 185].

अर्थात:तथा संसारिक जीवन धोखे की पूंजी के सिवा कुछ नहीं है।


वास्‍तव में दुनिया को जानने वालों में सई़द बिन मोसैय्यिब की भी गिनती होती है,अत:खलीफा का प्रतिनिधि उन के पास आकर खलीफा के बेटे के लिए उनकी बेटी को निकाह़ का प्रस्‍ताव देते हैं,वह कहते हैं:ऐ सई़द दुनिया अपने समस्‍त सामान के साथ तेरे पास आगई है,खलीफा का बेटा तेरी बेटी से निकाह़ करना चाहता है,क्‍या आप जानते हैं कि सई़द का उत्‍तर क्‍या था उन्‍होंने फरमाया:अल्‍लाह के सामने दुनिया का महत्‍व मच्‍छर के पंख के बराबर भी नहीं।तो भला खलीफा उस पंख में से क्‍या काट देगा और उन्‍हों ने खलीफा के बेटे से(अपनी बेटी)का वि‍वाह नहीं कराया,बल्कि एक फकीर क्षात्र से अपनी बेटी का वि‍वाह कर दिया।


इब्‍ने बाज़ रहि़महुल्‍लाहु से पूछा गया कि दुनिया से अनिच्‍छा का क्‍या मतलब है,तो आप रहि़महुल्‍लाहु ने फरमाया:दुनिया से अनिच्‍छा दुनिया पर आखिरत को प्राथमिकता देने और अनौपचारिकता अपनाने से प्राप्‍त होता है,ह़लाल रिज्‍़क से संतुष्‍ट रहे,अल्‍लाह की आज्ञाकारिता में जो चीज़ उसके लिए सहायक हो उस पर संतुष्‍ट हो,और आखिर‍त से दूर करने वाले कार्य से दूर रहे।


ऐ रह़मान के बंदो कितना अच्‍छा होता कि दुनिया हमारे हाथों में हो दिलों में नहीं...और नेक लोगों के लिए अच्‍छा धन कितनी अच्‍छी चीज़ है,किन्‍तु कठिनाइयां उस समय आती हैं जब हम दुनिया को आखिर‍त पर प्राथमिकता देने लगते हैं जिस के परिणामस्‍वरूप हम ह़राम कमाने लग जाते हैं,ह़ज़र‍त अ़ली बिन अबू त़ालिब रज़ीअल्‍लाहु अंहु से कहा गया कि ए अबुलह़सन आप हमें दुनिया की विशेषताएं बताएं,आप रज़ीअल्‍लाहु अंहु ने कहा:विस्‍तार से अथवा संक्षेप में लोगों ने कहा:संक्षेप में बताएं,आप ने फरमाया:दुनिया की वैध चीज़ों पर हिसाब व किताब होने वाला है और इसके अवैध चीज़ों पर यातना मिलने वाली है।


कठिनाइयां उस समय आती हैं जब हम (धन) इकट्ठा करते हैं किन्‍तु हम किसी पर कृपा नहीं करते किन्‍तु करते भी हैं तो जितना हमारे उूपर अल्‍लाह का कृपा एवं दया हुआ है उसके अनुसार नहीं करते।


समस्‍या उस समय होता है जब हमारा दिल दूसरे की चीज़ों की ओर ललचाई नजर से देखने लगता है,इसी लिए हम ईर्ष्‍या,अथवा घृणा एवं नाराज होने लगते हैं:

﴿ وَلَا تَمُدَّنَّ عَيْنَيْكَ إِلَى مَا مَتَّعْنَا بِهِ أَزْوَاجاً مِّنْهُمْ زَهْرَةَ الْحَيَاةِ الدُّنيَا لِنَفْتِنَهُمْ فِيهِ وَرِزْقُ رَبِّكَ خَيْرٌ وَأَبْقَى ﴾ [طه: 131]

अर्थात:और कदापि न देखिये आप उस आनन्‍द की ओर जो हम ने उस में से विभिन्‍न प्रकार के लोगों को दे रखा है,वह संसारिक जीवन की शोभा है,ताकि हम उन की परीक्षा लें,और आप के पालनहार का प्रदान ही उत्‍तम तथा अति स्‍थायी है।


तथा अल्‍लाह तआ़ला अधिक ज्ञान एवं नीति वाला है:

(وَلَوْ بَسَطَ اللَّهُ الرِّزْقَ لِعِبَادِهِ لَبَغَوْا فِي الْأَرْضِ وَلَكِن يُنَزِّلُ بِقَدَرٍ مَّا يَشَاءُ إِنَّهُ بِعِبَادِهِ خَبِيرٌ بَصِيرٌ) [الشورى: 27]

अ‍र्थात:और यदि फैला देता अल्‍लाह जीविका अपने भक्‍तों के लिये तो वह विद्रोह कर देते धरती में,परन्‍तु वह उतारता है एक अनुमान से जैसे वह चाहता है,वास्‍तव में वह अपने भक्‍तों से भली-भांति सुचित है(तथा)उन्‍हें देख रहा है।


ऐ मित्रो पद एवं पवदी और अधिक धन वाले लोग भी कभी कभी ज़ोह्द(वैराग्‍य)अपना सकते हैं,खलीफा उ़मर बिन अ़ब्‍दुल अ़ज़ीज़ के बेटे ने अंगूठी के लिए एक नगीना खरीदा,जिस के मूल्‍य एक हज़ार दिरहम था,जब उ़मर बिन अ़ब्‍दुल अ़ज़ीज़ को इसका ज्ञान हुआ तो उसे एक संदेश भेजा:प्रशंसाओं के पश्‍चात मुझे मालूम हुआ है कि तुम ने एक हज़ार दिरहम में एक नगीना खरीदा है।(ऐसा करो)उसे बेच कर उस पैसे से एक हज़ार भूके को खाना खिलादो,और उस नगीना के स्‍थान पर एक लोहे की अंगूठी खरीदलो और उस यह लिखो: رحم الله امرأً عرف قدر نفسه अल्‍लाह उस व्‍यक्ति पर कृपा करे जिस ने अपना स्‍थान पहचाना।


हमारे वर्तमान समय में एक व्‍यापारी ने कई करोड़ धन खर्च किया,और उनको ह़ज में देखा गया कि वह लोगों के जन दस्‍तरखान पर बचे हुए खाने खा रहे हैं,यह धनी व्‍यक्ति ही उनके ह़ज का खर्च उठाता है और लोग उसी के दस्‍तरखान पर खाना खाते हैं।


अल्‍लाह मुझे और आप को क़ुरान की बरकत से लाभान्वित फरमाए....


द्वतीय उपदेश:

الحمد لله القائل ﴿ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا ﴾ [لقمان: 33].

وصلى الله وسلم على نبيه العابد الباذل الزاهد ﴿ لَقَدْ كَانَ لَكُمْ فِي رَسُولِ اللَّهِ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ لِّمَن كَانَ يَرْجُو اللَّهَ وَالْيَوْمَ الْآخِرَ وَذَكَرَ اللَّهَ كَثِيراً ﴾ [فاطر: 5]


प्रशंसाओं के पश्‍चात

ऐ सज्‍जनों के समूह ज़ोह्द(वैराग्‍य) एवं संतुष्टि के विभिन्‍न श्रेणी हैं,ज़ोह्द का एक सबसे प्रसिद्ध परिभाषा यह यह है:ऐसे समस्‍त आ़माल को छोड़ना जो आखिरत के लिए लाभदायक न हो।


ऐ ईमानी भाइयो आइए ज़ोह्द के कुछ सद्ग्‍ुण पर विचार करते हैं:

ज़ोह्द की एक सुंदरता यह है कि इससे आत्‍मा को शांति एवं संतुष्टि मिलती है,सह़ी ह़दीस में आया है: वह मनुष्‍य सफल होगा जो मुसलमान होगा और उसे गुजारा के जितना रोज़ी मिली और अल्‍लाह तआ़ला ने उसे जो दिया उस पर संतुष्टि प्रदान की (इस ह़दीस को इमाम मुस्लिम ने वर्णित किया है)


ज़ोह्द(वैराग्‍य) की एक दूसरा सद्ग्‍ुण यह है कि इससे संयम आता है,और मनुष्‍य अपव्‍ययी से बचता है।


ज़ोह्द का एक सकारात्‍मक भाग यह है कि इससे विनम्रता आता है और किसी भी जीव को तुच्‍छ जानने से मनुष्‍य बचता है।


इसकी एक विशेषता यह है कि क़र्ज(ऋण) के कारण मनुष्‍यों की हत्‍या नहीं किया जाता और घर,सवारी और सामान आदि के प्रति संतुष्टि आती है।


इसकी एक विशेषता यह है कि गर्व,घमंड एवं अहंकार से मनुष्‍य बचा रहता है।


इसका सकारात्‍मक भाग यह भी है कि इससे उदारता आती और अधिक से अधिक दान एवं खैरात की तौफीक़ मिलती है।


ज़ोह्द का एक महत्‍व यह भी है कि आप लोगों के अनावश्‍यक मामलों में हस्‍तक्षेप करना छोड़ देते हैं।


ज़ोह्द(वैराग्‍य) की एक अन्‍य विशेषता यह है कि दुनिया तंगी एवं धन की कमी के समय जा़हिद(तपस्‍वी)लोग ही सब के कम परिशान होते हैं,उस आराम एवं सुकून के विपरीत जिसके साथ हम पले बढ़े हैं, الا ماشاء الله.


ज़ुह्द(वैराग्‍य)की एक विशेषता यह है कि इससे रचनाकार और मखलूक़ों का प्रेम पैदा होता है: दुनिया से अनिच्‍छा रखो,अल्‍लाह तुम को प्रिय रखेगा,और जो कुछ लोगों के पास है उससे अरोचक हो जाओ,तो लोग तुम से प्रेम करेंगे ।


अंत में:खुशखबरी है ऐसे लोगों के लिए जिन के हाथों में दुनिया है: वह उसमें से रात दिन(अल्‍लाह के मार्ग में)खर्च करता है ।खुशखबरी है ऐसे लोगों के लिए जिन के दिलों में दुनिया की चाहत नहीं,और खुशखबरी है ऐसे लोगों के लिए जिन्‍हें दुनिया ने अपने जाल में नहीं फांसा।

 

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • الدنيا بين الزاد والزهد (خطبة)
  • الدنيا بين الزاد والزهد (باللغة الأردية)
  • الله الستير (خطبة) (باللغة الهندية)
  • الدنيا بين الزاد والزهد (خطبة) - باللغة الإندونيسية
  • خطبة: الدنيا بين الزاد والزهد (باللغة البنغالية)

مختارات من الشبكة

  • مخطوطة مجموع فيه ذم الدنيا لابن أبي الدنيا ومنتخب الزهد والرقائق للخطيب البغدادي(مخطوط - مكتبة الألوكة)
  • الدنيا متاع وخير متاع الدنيا المرأة الصالحة(مقالة - مجتمع وإصلاح)
  • الدنيا بين الزاد والزهد (خطبة) - باللغة النيبالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الدنيا في قصائد ديوان (مراكب ذكرياتي) للشاعر الدكتور عبد الرحمن العشماوي(مقالة - حضارة الكلمة)
  • الحديث عن الدنيا في ديوان عبق الأمسيات للشاعر الدكتور حمزة أحمد الشريف(مقالة - حضارة الكلمة)
  • حقيقة الزهد في الدنيا(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الطمع في الدنيا والزهد في الآخرة(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الدنيا.. وعابر السبيل(مقالة - آفاق الشريعة)
  • التفكر في الدنيا(مقالة - حضارة الكلمة)
  • مختارات من كتاب الزهد للإمام وكيع بن الجراح(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • ندوة دولية في سراييفو تبحث تحديات وآفاق الدراسات الإسلامية المعاصرة
  • النسخة الثانية عشرة من يوم المسجد المفتوح في توومبا
  • تخريج دفعة جديدة من الحاصلين على إجازات علم التجويد بمدينة قازان
  • تخرج 220 طالبا من دارسي العلوم الإسلامية في ألبانيا
  • مسلمو سابينسكي يحتفلون بمسجدهم الجديد في سريدنيه نيرتي
  • مدينة زينيتشا تحتفل بالجيل الجديد من معلمي القرآن في حفلها الخامس عشر
  • بعد 3 سنوات أهالي كوكمور يحتفلون بإعادة افتتاح مسجدهم العريق
  • بعد عامين من البناء افتتاح مسجد جديد في قرية سوكوري

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1446هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 27/12/1446هـ - الساعة: 15:51
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب