• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | مقالات شرعية   دراسات شرعية   نوازل وشبهات   منبر الجمعة   روافد   من ثمرات المواقع  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    الجنة ونعيمها (خطبة)
    د. أيمن منصور أيوب علي بيفاري
  •  
    ظاهرة كسب المال الحرام (خطبة)
    أ. د. حسن بن محمد بن علي شبالة
  •  
    من الفائز؟ (خطبة)
    أبو سلمان راجح الحنق
  •  
    ولاية الله بين أهل الاستقامة وأهل الوسائط
    أ. د. علي حسن الروبي
  •  
    من أدلة صدقه عليه الصلاة والسلام: تبتله وكثرة ...
    الشيخ عبدالله محمد الطوالة
  •  
    حال الصحابة - رضي الله عنهم - مع القرآن في صلاتهم
    الشيخ أ. د. عرفة بن طنطاوي
  •  
    من مائدة السيرة: مقاطعة قريش لبني هاشم وبني
    عبدالرحمن عبدالله الشريف
  •  
    الفرع الثالث: أحكام ما يستر به العورة (من الشرط ...
    يوسف بن عبدالعزيز بن عبدالرحمن السيف
  •  
    الإرادة والمشيئة
    الشيخ عبدالعزيز السلمان
  •  
    آفة الإغراب في العلم
    عمرو عبدالله ناصر
  •  
    أسباب البركة في العلم
    رمضان صالح العجرمي
  •  
    حديث: أمرت بريرة أن تعتد بثلاث حيض
    الشيخ عبدالقادر شيبة الحمد
  •  
    تفسير سورة الفيل
    أ. د. كامل صبحي صلاح
  •  
    الداخلون الجنة بغير حساب (خطبة)
    د. عبد الرقيب الراشدي
  •  
    خطبة: الذين يصلي عليهم الله وتصلي عليهم الملائكة
    الشيخ الدكتور صالح بن مقبل العصيمي ...
  •  
    حسن الظن بالله تعالى (خطبة)
    د. عبد الرقيب الراشدي
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / الرقائق والأخلاق والآداب
علامة باركود

إن الله يحب التوابين (خطبة) (باللغة الهندية)

إن الله يحب التوابين (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 20/4/2022 ميلادي - 19/9/1443 هجري

الزيارات: 4752

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

(अल्‍लाह तौबा करने वालों को पसंद फरमाता है)

 

प्रशंसाओं के पश्‍चात:

मैं आप को और स्‍वयं को अल्‍लाह का तक्‍़वा (धर्मनिष्‍ठा) अपनाने,तक्‍़वा के मार्ग पर स्थिर रहने और इसके उच्‍च स्‍थान को प्राप्‍त करने की लिए आत्‍मा से संघर्ष करने की वसीयत करता हूं:

﴿ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَلْتَنْظُرْ نَفْسٌ مَا قَدَّمَتْ لِغَدٍ وَاتَّقُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ ﴾ [الحشر:۱۸]

अर्थात:हे लोगो जो ईमान लाए होअल्‍लाह से डरो,और देखना चाहिये प्रत्‍येक को कि उस ने क्‍या भेजा है कल के लिये,तथा डरते रहो अल्‍लाह से निश्‍चय अल्‍लाह सूचित है उस से जो तुम करते हो।


बोखारी ने अपनी सह़ी में उ़मर बिन खत्‍ताब रज़ीअल्‍लाहु अंहु से रिवायत किया है कि: (नबी के युग में एक व्‍यक्ति जिसका नाम अ़ब्‍दुल्‍लाह और उपनाम हि़मार था,वह रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम को हंसाया करता था,नबी ने उसको शराब पीने पर मारा था,श्रोतागण में से एक व्‍यक्ति ने कहा:इस पर शापकरेइसे अनेक बार इस विषय में लाया जाता है,नबी ने फरमाया:इस पर शापन करो,अल्‍लाह की क़सममैं तो इसके विषय में यही जानात हूं कि यह अल्‍लाह और उसके रसूल से प्रेम करता है।


र‍ह़मान के बंदोमैं इस ह़दीस के आलोक में प्रत्‍येक शर्म करने वाले पाप के व्‍यसनीव्‍यक्ति को याद दिलाना चाहता हूं,जो तौबा के पश्‍चात अवज्ञा कर बैठता है,चाहे तौबा के पश्‍चात की अवधि कम हो अथवा अधिक,मैं उस व्‍यकित के प्रति चर्चा कर रहा हूं जो हर बार पाप करने के बार अफसोस करता है,कभी कभी शैतान उसे निराशकर देता है और उसके दिल में यह भर्म डाल देता है कि वह मोनाफिक़ (कपटी) है,ह़दीस में आया है कि: (जिसे अपने पुण्‍य से प्रसन्‍नता मिले और पाप से शोकहो तो वास्‍तव में वही मोमिन है) (इसे अह़मद और तिरमिज़ी ने रिवायत किया है और अल्‍बानी ने स‍ह़ी कहा है)।कुछ लोग पाप तो करते हैं किन्‍तु जब जब पाप करते हैं उन्‍हें अपने पाप पर अफसोस होता है और तौबा कर लेते हैं,कभी कभी पापों पर आंसू भी बहाते हैं,किन्‍तु वह स्‍वाभाविक रूप से दर्बल होते हैं इस लिए दोबारा वह पाप कर बैठते हैं।


अल्‍लाह के बंदोजो व्‍यक्ति सुख शांति में हो उसे अल्‍लाह की प्रशंसा करनी चाहिए और शत्रु के बुरी नजर से बचना चाहिए,उपदेश व परामर्श लेना चाहिए,बार-बार पाप करने का अनुभव नहीं करना चाहिए,अपने हृदय में पाप का भय बैठाए रखना चाहिए,क्‍योंकि अल्‍लाह के डर की कमी भी(पाप का) एक कारण है,किन्‍तु केवल यही एक कारण नहीं है,क्‍योंकि ऐसे भी लोग पाए जाते हैं जो किसी पाप को तो अवश्‍य करते हैं जैसे सिगरेट पीना अथवा अवैध चीज़ों को देखना,किन्‍तु यदि उसे रिश्‍वत के रूप में अधिक पैसा भी दिया जाए तो व‍ह लेने से इनकार कर देते हैं,और इसमें उन्‍हें कोई कठिनाई नहीं होती,क्‍योंकि अल्‍लाह तआ़ला का डर उसके हृदय में होता है,और उनके अंदर पाप का भय बैठा होता है,भय अभी समाप्‍त नहीं हुआ होता है।


ईमानी भाइयोपापों के जो दुष्‍प्रभाव एवं दुष्‍टताएं दुनिया एवं आखिरत में होती हैं,वह किसी से भी छुपी नहीं,किन्‍तु पाप हो जाए तो उसका इलाज केवल यही है कि तौबा किया जाए और सदाचार किया जाए,ह़दीस में है कि: (बंदा जब पाप करता है और इस्तिगफार और तौबा करता है तो उसका दिल पवित्र हो जाता है (काला धब्‍बा मिट जाता है) और यदि वह पाप दोबारा करता है तो काला बिंदु फेल जाता है यहां तक कि पूरे दिल पर छा जाता है और यही वह ران है जिस का उल्‍लेख अल्‍लाह ने इस आयत में किया है:

﴿ كَلَّا بَلْ رَانَ عَلَى قُلُوبِهِمْ مَا كَانُوا يَكْسِبُونَ ﴾ [المطففين: 14]

में किया है)। (इसे तिरमिज़ी ने रिवायत किया है और अल्‍बानी ने इसे स‍ही़ कहा है)।


ज्ञात हुआ कि तौबा व इस्तिगफार से काला धब्‍बा मिट जाता है और जब वह मिट जाए तो दिल में ران (ज़ंग) नहीं बचता।


अल्‍लाह के बंदोउचित लगता है कि प्रत्‍येक पाप से तौबा करने की जो शर्तें हैं,उनका उल्‍लेख कर दिया जाए:प्रथम शर्त:अल्‍लाह तआ़ला के अवज्ञा पर व्‍याकुलहोना।द्वतीय शर्त:पाप से दूर रहना।तृतीय शर्त:दोबारा न करने का ठान लेना,और कुछ पापों में चौथी शर्त भी है:जिनका अधिकार है उन तक अधिकार पहुंचाना। विद्वानों का कहना है:जो व्‍यक्ति इन शर्तों को पूरी करे उनकी तौबा स्‍वीकार होती है।


रह़मान के बंदोजिस पर उसकी आत्‍मा एवं शैतान प्रभावी हो जाए,और वह दोबारा पाप कर बैठे,तो उसे चाहिए कि दोबारा तौबा करे,इब्‍ने तैमिया रहि़महुल्‍लाह फरमाते हैं:यदि बंदा तौबा करने के पश्‍चात फिर पाप करे तो यातना का पात्र हो जाता है,यदि तौबा करे तो अल्‍लाह तआ़ला फिर उसकी तौबा स्‍वीकार लेता है,मुसलमान के लिए यह वैध नहीं कि तौबा करने के पश्‍चात यदि उससे फिर पाप हो जाए तो वह अपने पाप पर अटल रहे,बल्कि उसे चाहिए कि तौबा करे यद्यपि दिन में सौ बार ही क्‍यों न पाप करता हो,इमाम अह़मद ने अपनी मुस्‍नद में अ़ली रज़ीअल्‍लाहु अंहु से रिवायत किया है,वह नबी से वर्णित करते हैं कि आप ने फरमाया: (अल्‍लाह तआ़ला ऐसे बंदे को पसंद करता है जो बार-बार पाप करने के पश्‍चात बार-बार तौबा करता है)।एक दूसरी ह़दीस में आया है: (जिदके साथ यदि कोई पाप किया जाए तो वह सग़ीरा (छोटा) पाप नहीं रहता,और पाप के पश्‍चात इस्तिगफार किया जाए तो वह (कबीरा) बड़ा पाप नहीं रहता)। (आप रहि़महुल्‍लाहु का कथन समाप्‍त हुआ: الفتاوی: ۱۶/۵۸)


एक मित्र ने अपने एक पहचानने वाले के विषय में बताया कि वह पुण्‍य व भलाई के बहुत सारे कार्य करता है,उनमें से यह भी है कि वह सोमवार,जुमरात और अय्यामेबीज़ (आलोकित दिन:इस्‍लामी महीने की तेरहवीं,चौदहवीं और पंद्रहवीं तारीख) के रोज़े रखता है,प्रत्‍येक दिन दान करता है,किन्‍तु वह सिगरेट पीता है,ज‍बकि एक दूसरा व्‍यक्ति ऐसा है जो नफली रोज़े रखता और नफल नमाज़ों को पढ़ता है,क़ुर्रान का सस्‍वर पाठ करता और पुण्‍य के अनेक कार्य करता है,किन्‍तु वह अवैध चीज़ों को देखता है,तौबा करता है,फिर दोबारा उसको करता है,यहां तक कि निकट है कि वह मायूस हो जाए।


नेक मोमिन भी कभी कभी किसी ऐसे पाप को कर सकता है जो उसका पीछा न छोड़ता हो और उसे निराशकरदेता हो,किन्‍तु जब उस पाप के साथ सच्‍ची पछतावा,स्‍थायी इस्तिगफार व तौबा और नियमित दुआ़ शामिल रहे तो अल्‍लाह तआ़ला अपनी सहायता उतारता है,उसकी रक्षा एवं समर्थनकरता है,चाहे उसमें समय ही क्‍यों न लगे,और कभी तो अल्‍लाह की सहायता आने में देर इस लिए होती है ताकि बंदा की परिक्षणहो सके,इस लिए स्थिर रहें चाहे घाव कितने ही गहरे क्‍यों न हों,और दुआ़ जो आप का हथियार है,उसे हाथ से न छोड़ें और पाप के सामने ढ़ेर न हों कि आप उसके गुलाम बन जाएं।


बोखारी एवं मुस्लिम ने अबू होरैरा रज़ीअल्‍लाहु अंहु से रिवायत किया है कि नबी ने अपने पालनहार से नकल करते हुए फरमाया: ((एक बंदे ने पाप किया,उसने कहा:हे अल्‍लाहमेरे पाप को क्षमा करदे,तो (अल्‍लाह) तआ़ला ने फरमाया:मेरे बंदे ने दुराचार किया है,उसको पता है कि उसका रब है जो पाप को क्षमा भी करता है और पाप पर पकड़ भी करता है,उस बंदे ने फिर पाप किया तो कहा:मेरे रबमेरे पाप को क्षमा प्रदान कर,तो अल्‍लाह ने फरमाया:मेरा बंदा है,उसने दुराचार किया है तो उसे पता है कि उसका रब है जो पापों को क्षमा करदेता है और चाहे तो पाप पर पकड़ करता है,उस बंदे ने फिर से वही किया,पाप किया और कहा:मेरे रबमेरे पाप को क्षमा प्रदान कर,तो अल्‍लाह तआ़ला ने फरमाया:मेरे बंदे ने दुराचार किया तो उसे पता है कि उसका रब है जो पाप को क्षमा करता है और( चाहे तो ) पाप पर पकड़ भी करता है,(मेरे बंदेअब तू) जो चाहे करे,मैं ने तुझे क्षमा कर दिया है))।


हे غفار (क्षमाशील) हमें क्षमा प्रदान कर,हे تواب (तौबा स्‍वीकारने वाले) हमारी तौबा स्‍वीकार ले,हे سِتیر हमारे पापों पर परदा डालदे,हे ہادی हमें हिदायत प्रदान कर,हे महिमा व वैभव एवं सम्‍मान व गरिमा के मालिक,


हे जीवित एवं समस्‍त मखलूकों को सहारा देने वाले


द्वतीय उपदेश:

الحمد لله التواب القائل :﴿ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ التَّوَّابِينَ وَيُحِبُّ الْمُتَطَهِّرِينَ ﴾ [البقرة: 222]، وصلى الله وسلم على نبيه الذي كان يعد له في المجلس الواحد مائة مرة: ((ربِّ اغفر لي وتب عليَّ؛ إنك أنت التواب الغفور)).


प्रशंसाओं के पश्‍चात:

ऐ अल्‍लाह के बंदोआप अपने पालनहार के समक्ष पापों को स्‍वीकार किया करें,अधिक से अधिक दान किया करे,अल्‍लाह तआ़ला का फरमान है:

﴿ وَآخَرُونَ اعْتَرَفُوا بِذُنُوبِهِمْ خَلَطُوا عَمَلًا صَالِحًا وَآخَرَ سَيِّئًا عَسَى اللَّهُ أَنْ يَتُوبَ عَلَيْهِمْ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ * خُذْ مِنْ أَمْوَالِهِمْ صَدَقَةً تُطَهِّرُهُمْ وَتُزَكِّيهِمْ بِهَا وَصَلِّ عَلَيْهِمْ إِنَّ صَلَاتَكَ سَكَنٌ لَهُمْ وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ * أَلَمْ يَعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ هُوَ يَقْبَلُ التَّوْبَةَ عَنْ عِبَادِهِ وَيَأْخُذُ الصَّدَقَاتِ وَأَنَّ اللَّهَ هُوَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ ﴾ [التوبة: 102 - 104].


अर्थात:और कुछ दूसरे भी हैं जिन्‍होंने अपने पापों को स्‍वीकार कर लिय है,उन्‍होंने कुछ सुकर्म और कुछ दूसरे कुकर्म को मिश्रित कर लिया है,आशा है कि: अल्‍लाह उन्‍हें क्षमा कर देगा,वास्‍तव में अल्‍लाह अति क्षमी दयावान है।हे नबीआप उन के धनों से दान लें,और उस के द्वारा उन (के मनों) को शुद्ध करें,और उन्‍हें आशीर्वाद दें,वास्‍तव में आप का आशीर्वाद उन के लिए संतोष का कारण है,और अल्‍लाह सब सुनने जानने वाला है।क्‍या वह नहीं जानते कि अल्‍लाह ही अपने भक्‍तों की क्षमा स्‍वीकार करता तथा (उन के) दानों को अंगीकार करता हैऔर वास्‍तव में अल्‍लाह अति क्षमी दयावन है।


मुसलमान पर अनिवार्य है कि तौबा व इस्तिगफार करने के साथ सदाचार भी किया करता रहे,आप का कथन है: (तुम जहां कहीं भी रहो अल्‍लाह से डरते रहो,और दुराचार के पश्‍चार कदाचार करो,यह कदाचार दुराचार को मिटदेगी),अल्‍लाह का कथन है:

﴿ وَأَقِمِ الصَّلَاةَ طَرَفَيِ النَّهَارِ وَزُلَفًا مِنَ اللَّيْلِ إِنَّ الْحَسَنَاتِ يُذْهِبْنَ السَّيِّئَاتِ ذَلِكَ ذِكْرَى لِلذَّاكِرِينَ ﴾ [هود: 114]

अर्थात:तथा आप नमाज़ की स्‍थापना करें,दिन के सीरों पर और कुछ रात बीतने पर,वास्‍तव में सदाचार दुराचारों को दूर कर देते हैं,यह एक शिक्षा है,शिक्षा ग्रहण करने वालों के लिये।


जो व्‍यक्ति एकांत में किए जाने वाले पाप करता हो उसे चाहिए कि अधिक से अधिक ऐसी प्रार्थनाएं करे जो एकांत में की जाती हों,जो व्‍यक्ति छुपा कर पाप करे उसे चाहिए कि तौबा भी छुपा कर करे और जो व्‍यक्ति खुल कर पाप करता हो उसे चाहिए कि खुल कर तौबा भी करे।


अलहम्‍दोलिल्‍लाह हमारा पालनहार अधिक क्षमाशील और तौबा स्‍वीकारने वाला है,ह़दीस में आया है कि: (उस हस्‍ती की क़सम जिस के हाथ में मेरा प्राण हैयदि तुम (लोग) पाप न करो तो अल्‍लाह तआ़ला तुम को (इस दुनिया) से ले जाए और (तुम्‍हारे बदले में) ऐसी समुदाय को ले आए जो पाप करें और अल्‍लाह से क्षमा मांगें तो वह उनको क्षमा प्रदान फरमाए)।


प्रत्‍येक वह पापी जो अपने पाप पर शर्मिंदाहोता और उससे तौबा करता है,उससे यह कहना है कि:कितने ही पाप ऐसे हैं जिस ने उस स्‍वयं- प्रसन्‍नता को तोड़ दिया जो बंदे के विनाशका कारण भी बन सकता हैकितने ही पाप ऐसे हैं जिसके कारण बंदा का दिल अल्‍लाह के डर से भर गयाकितने ही पाप ऐसे हैं जो रोने,विनम्रता,दुआ़ व तौबा एवं मांगने का कारण बनेकितने ही पाप ऐसे हैं जो अनेक आज्ञाकारियों का कारण बने


ऐ ईमानी भाइयोयह जानन चाहिए कि हर मोमिन के लिए तौबा करना अनिवार्य है,तौबा के बिना न कोई बंदा पूर्णता प्राप्‍त कर सकता है,न उसे अल्‍लाह की निकटता प्राप्‍त हो सकती है और न उससे नापसंद चीज़ें दूर हो सकती हैं,हमारे नबी मोह़म्‍मद सबसे उत्‍तमऔर अल्‍लाह के सबसे प्रिय बंदे थे,इसके बावजूद आप फरमाते थे: (ऐ लोगोअल्‍लाह की ओर तौबा करोक्‍योंकि मैं अल्‍लाह से एक दिन में सौ बार तौबा करता हूं) (इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है)


आप के अगले पिछले समस्‍त पापों को क्षमा प्रदान कर दिया गया था,इसी मगफिरत के कारण क्‍़यामत के दिन आप को शिफाअ़त-ए-उ़ज़मा (विशाल परामर्श) प्रदान किया जाएगा,जैसा कि सही़ बोखारी में शिफाअ़त (परामर्श) की प्रसिद्ध ह़दीस में आया है: ((....वह ई़सा के पास आएंगे,वह भी कहेंगे कि मुझ में इसकी साहसनहीं,तुम सब मोह़म्‍मद के पास जाओ वह अल्‍लाह के सर्वोत्‍कृष्‍ट बंदे हैं,अल्‍लाह तआ़ला ने उनके समस्‍त अगले पिछले पाप क्षमा कर दिए हैं...))।


शुभसूचक एवं सचेत कर्ता नबी पर दरूद व सलाम भेजिए


हे अल्‍लाह हमारे अगले पिछले पापों को क्षमा फरमादे

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • خطبة: يحب لأخيه ما يحب لنفسه (باللغة الهندية)
  • الله الرفيق (خطبة) (باللغة الهندية)
  • فاذكروا آلاء الله لعلكم تفلحون (خطبة) (باللغة الهندية)
  • ضرورة طلب الهداية من الله (باللغة الهندية)
  • الله الكريم الأكرم (خطبة) (باللغة الهندية)
  • {إن الله يحب التوابين} (خطبة) - باللغة النيبالية
  • {إن الله يحب التوابين} (خطبة) - باللغة الإندونيسية
  • إن الله يحب التوابين (خطبة) - باللغة البنغالية

مختارات من الشبكة

  • إن الله يحب التوابين (باللغة الأردية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • إن الله يحب التوابين (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • فضل التوبة وتيسيرها وحب الله لأهلها، وقوله تعالى: {إن الله يحب التوابين}(مقالة - موقع الشيخ د. خالد بن عبدالرحمن الشايع)
  • فضل التوبة وتيسيرها وحب الله لأهلها وقوله تعالى: (إن الله يحب التوابين)(محاضرة - موقع الشيخ د. خالد بن عبدالرحمن الشايع)
  • الله يحب التوابين(مقالة - آفاق الشريعة)
  • إن الله يحب التوابين ( بطاقة دعوية )(كتاب - مكتبة الألوكة)
  • زراعة الحب(مقالة - آفاق الشريعة)
  • من آثار الإيمان باسم الله تعالى العفو (2)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • سلسلة شرح الأربعين النووية: الحديث (13) لا يؤمن أحدكم حتى يحب لأخيه ما يحب لنفسه (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: يحب لأخيه ما يحب لنفسه (باللغة البنغالية)(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • ندوة لأئمة زينيتسا تبحث أثر الذكاء الاصطناعي في تطوير رسالة الإمام
  • المؤتمر السنوي التاسع للصحة النفسية للمسلمين في أستراليا
  • علماء ومفكرون في مدينة بيهاتش يناقشون مناهج تفسير القرآن الكريم
  • آلاف المسلمين يجتمعون في أستراليا ضمن فعاليات مؤتمر المنتدى الإسلامي
  • بعد ثلاث سنوات من الجهد قرية أوري تعلن افتتاح مسجدها الجديد
  • إعادة افتتاح مسجد مقاطعة بلطاسي بعد ترميمه وتطويره
  • في قلب بيلاروسيا.. مسجد خشبي من القرن التاسع عشر لا يزال عامرا بالمصلين
  • النسخة السادسة من مسابقة تلاوة القرآن الكريم للطلاب في قازان

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 24/5/1447هـ - الساعة: 8:22
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب