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عداوة الشيطان في القرآن (خطبة) (باللغة الهندية)

عداوة الشيطان في القرآن (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

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تاريخ الإضافة: 27/7/2022 ميلادي - 28/12/1443 هجري

الزيارات: 6731

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शीर्षक:

क़ुरान में शैतान की शत्रुता का उल्‍लेख


प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चात

मैं आप सबको और स्‍वयं को अल्‍लाह का तक्‍़वाधर्मनिष्‍ठाअपनाने की वसीयत करता हूं,क्‍योंकि जो व्‍यक्ति अल्‍लाह का तक्‍़वा अपनाता है अल्‍लाह तआ़ला उसके पापों को क्षमा कर देता,उसको बड़े पुण्‍य प्रदान करता,उसकी कठिनाइयों को दूर करदेता और उसके समस्‍त मामलों को आसान करदेता है:

﴿يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُوا رَبَّكُمْ وَاخْشَوْا يَوْمًا لَّا يَجْزِي وَالِدٌ عَن وَلَدِهِ وَلَا مَوْلُودٌ هُوَ جَازٍ عَن وَالِدِهِ شَيْئًا إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا وَلَا يَغُرَّنَّكُم بِاللَّهِ الْغَرُورُ﴾ [لقمان: 33]

अर्थात:हे लोगोडरो अपने पालनहार से तथा भय करो उस दिन का जिस दिन नहीं काम आयेगा कोई पिता अपनी संतान के और न कोई पुत्र काम आने वाला होगा अपने पिता के कुछ भीनिश्‍चय अल्‍लाह का वचन सत्‍य हैअत: तुम्‍हें कदापि धोखे में न रखे संसारिक जीवन और न धोखे में रखे अल्‍लाह से प्रवंचकशैतान


रह़मान के ब़दोयह ऐसी शत्रुता है जिस का इतिहास लंबा है,हमारे पुर्वजों के पूरे जीवन में यह शत्रुता रही है,पैगंबरों ने भी इस शत्रुता स्‍वयं को बचा नही पाया,यदि शत्रु को प्रभुत्‍व प्राप्‍त हो जाए तो उस शत्रुता का प्रभाव बड़ा खतरनाक होता है,वह इस प्रकार कि उस दिन हानिउठाना पड़ता है जब अल्‍लाह की ओर लौट कर जाना है,इस शत्रुता का उल्‍लेख क़ुरान की अनेक आयतों में हुआ है,इस शत्रुता की एक चुनौती यह भी है कि हम उस शत्रु को देख नहीं पाते...नि:संदेह वह शैतान की शत्रुता है


आइए हम इस शत्रु से संबंधित कुछ आयतों पर आलोक डालते हैं


यह शत्रुता हम सब के पिता आदम के साथ आरंभ हुआ जब आप स्‍वर्ग में थे और अल्‍लाह ने आदेश दिया कि आदम का सजदा किया जाए तो इबलीस ने सजदा नहीं किया,जब आदम और ह़व्‍वा कोविशेषपेड़ का फल खाने से मना फरमाया तो इबलीसशैतान सजदा ने इस भ्रम में फसा कर उन्‍हें पाप का शिकारी बना लिया कि वह अनंतकाल का पेड़ है और उनके सामने क़सम खा कर कहने लगा कि वह उनका शुभचिंतक है:

﴿ فَلَمَّا ذَاقَا الشَّجَرَةَ بَدَتْ لَهُمَا سَوْءَاتُهُمَا وَطَفِقَا يَخْصِفَانِ عَلَيْهِمَا مِن وَرَقِ الْجَنَّةِ وَنَادَاهُمَا رَبُّهُمَا أَلَمْ أَنْهَكُمَا عَن تِلْكُمَا الشَّجَرَةِ وَأَقُل لَّكُمَا إِنَّ الشَّيْطَآنَ لَكُمَا عَدُوٌّ مُّبِينٌ * قَالاَ رَبَّنَا ظَلَمْنَا أَنفُسَنَا وَإِن لَّمْ تَغْفِرْ لَنَا وَتَرْحَمْنَا لَنَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ ﴾ [الأعراف: 22 ، 23]

अर्थात:फिर जब दोनों ने उस वृक्ष का स्‍वाद लिया तो उन के लिये उन के गुत्‍यांग खल गये और वे उन पर स्‍वर्ग के पत्‍ते चिपकाने लगेऔर उन्‍हें उन के पालनहार ने आवाज़ दी:क्‍या मैं ने तुम्‍हें इस वृक्ष से नहीं रोका थाऔर तुम दोनों से नहीं कहा था कि शैतान तुम्‍हारा खुला शत्रु हैदोनों ने कहा:हे हमारे पालनहारहम ने अपने उूपर अत्‍याचार


कर लिया और यदि तू हमें क्षमा तथा हम पर दया नहीं करेगा तो हम अवश्‍य ही नाश हो जायेंगे


सूरह आ़राफ की इन आयतों में आदम की कहानी बयान की गई है और उनको शैतान के जिन भ्रमों का सामना हुआ,उनका उल्‍लेख आया है,उसके पश्‍चात दो बार लोगों को इस शब्‍दों में संबोधित किया गया है:

﴿ يَا بَنِي آدَمَ ﴾

अर्थात:हे आदम के पुत्रो


इस संबोधन की नीति यह है कि:संतान अपने पूर्वजों का बदला लेती हैं,उनके शत्रुओं से शत्रुता करती हैं और उसके फंदे में पड़ने से सचेत रहती हैं


﴿ يَا بَنِي آدَمَ لاَ يَفْتِنَنَّكُمُ الشَّيْطَانُ كَمَا أَخْرَجَ أَبَوَيْكُم مِّنَ الْجَنَّةِ يَنزِعُ عَنْهُمَا لِبَاسَهُمَا لِيُرِيَهُمَا سَوْءَاتِهِمَا إِنَّهُ يَرَاكُمْ هُوَ وَقَبِيلُهُ مِنْ حَيْثُ لاَ تَرَوْنَهُمْ ﴾ [الأعراف: 27]

अर्थात:हे आदम के पुत्रोऐसा न हो कि शैतान तुम्‍हें बहका दे जैसे तुम्‍हारे माता-पिता को स्‍वर्ग से निकाल दिया,उन के वस्‍त्र उतरवा दिये ताकि उन्‍हें उनके गुप्‍तांग दिखा दे,वास्‍तव में वह तथा उस की जाति तुम्‍हें ऐसे स्‍थान से देखती है जहाँ से तुम उन्‍हें नहीं देख सकते


अल्‍लाह के बंदोअल्‍लाह तआ़ला ने हमें शैतान से सचेत करते हुए फरमाया:

﴿ يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا وَلَا يَغُرَّنَّكُم بِاللَّهِ الْغَرُورُ ﴾ [فاطر: 5]

अर्थात:हे लोगोनिश्‍चय अल्‍लाह का वचन सत्‍य हैअत: तुम्‍हें धोखे में न रखे संसारिक जीवन और न धोखे में रखे अल्‍लाह से अति प्रवंचकशैतान


इब्‍ने कसीर फरमाते हैं:इस आयत में ﴾ الْغَرُورُ ﴿ –धोकेबाज़ का आश्‍य शैतान है,इब्‍ने अ़ब्‍बास का कथन है:अर्थात शैतान तुम्‍हें प्रलोभन में न डाल दे

 

अल्‍लाह तआ़ला ने हमें शैतान की शत्रुता को याद दिलाने के पश्‍चात हमारे लिए इसका उद्देश्‍य भी स्‍पष्‍ट कर दिया है:

﴿ إِنَّ الشَّيْطَانَ لَكُمْ عَدُوٌّ فَاتَّخِذُوهُ عَدُوًّا إِنَّمَا يَدْعُو حِزْبَهُ لِيَكُونُوا مِنْ أَصْحَابِ السَّعِيرِ ﴾ [فاطر: 6]

अर्थात:वास्‍तव में शैतान तुम्‍हारा शत्रु है अत: तुम उसे अपना शत्रु ही समझो वह बुलाता है अपने गिरोह को इसी लिये ताकि वह ना‍रकियों में हो जायें


ईमानी भाइयोअल्‍लाह तआ़ला ने हमें शैतान से सचेत करते हुए चैतावनी दी कि वह बंदा पर नियमित आक्रमण करता है,अल्‍लाह तआ़ला का कथन है:

﴿ وَلاَ تَتَّبِعُواْ خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُّبِينٌ ﴾ [البقرة: 168]

अर्थात:और शैतान की बताई राहों पर न चलो वह तुम्‍हारा खुला शत्रु है


अल्‍लाह तआ़ला ने हमारे समक्ष यह भी स्‍पष्‍ट कर दिया कि शैतान का किया प्रयास होता है और वह किस चीज का आदेश देता है:

﴿ إِنَّمَا يَأْمُرُكُمْ بِالسُّوءِ وَالْفَحْشَاء وَأَن تَقُولُواْ عَلَى اللّهِ مَا لاَ تَعْلَمُونَ ﴾ [البقرة: 169]

अर्थात:वह तुम को बुराई तथा निर्लज्‍जा का आदेश देता है,और यह कि अल्‍लाह पर उस चीज़ का आरोप धरो जिसे तुम नहीं जानते हो


तथा पालनहार ने यह भी बयान फरमाया कि सदक़ादानसे रोकने के लिए शैतान बंदों के साथ कैसी मक्‍कारी करता है,उसे निर्धनता एवं दरिद्रता से डराता और बखीली का आदेश देता है:

﴿ الشَّيْطَانُ يَعِدُكُمُ الْفَقْرَ وَيَأْمُرُكُم بِالْفَحْشَاء وَاللّهُ يَعِدُكُم مَّغْفِرَةً مِّنْهُ وَفَضْلًا وَاللّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ ﴾ [البقرة: 268]

अर्थात:शैतान तुम्‍हें निर्धनता से डराता है,तथा निर्लज्‍जा की प्रेरणा देता है, तथा अल्‍लाह तुम को अपनी क्षमा और अधिक देने का वचन देता है,तथा अल्‍लाह विशाल ज्ञानी है


अल्‍लाह तआ़ला ने हमें यह भी बताया कि शैतान असत्‍य एवं अवैध की सुंरद बना कर प्रस्‍तुत करता है:

﴿ وَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطَانُ أَعْمَالَهُمْ فَصَدَّهُمْ عَنِ السَّبِيلِ ﴾ [العنكبوت: 38]

अर्थात:और शोभनीय बना दिया शैतान ने उन के कर्मों को और रोक दिया उन्‍हें सुपथ से


दूसरी आयत में फरमाया:

﴿ قَسَتْ قُلُوبُهُمْ وَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطَانُ مَا كَانُواْ يَعْمَلُونَ ﴾ [الأنعام: 43]

अर्थात:उन के दिल और भी कड़े हो गये,तथा शैतान ने उन के लिये उन के कुकर्मों को सुन्‍दर बना दिया


तीसरी आयत में फरमाया:

﴿ قَالَ رَبِّ بِمَا أَغْوَيْتَنِي لأُزَيِّنَنَّ لَهُمْ فِي الأَرْضِ وَلأُغْوِيَنَّهُمْ أَجْمَعِينَ ﴾ [الحجر: 39]

अर्थात:व‍ह बोला:मेरे पालनहारतेरे मुझ को कुपथ कर देने के कारण,मैं अवश्‍य उन के लिये धरती मेंतेरी अवज्ञा कोमनोरम बना दूँगा,और उन सभी को कुपथ कर दूँगा


अल्‍लाह के बंदोशैतान का प्रयास होता है कि मोमिन को उदासी एवं रंज में डालदे:

﴿ إِنَّمَا النَّجْوَى مِنَ الشَّيْطَانِ لِيَحْزُنَ الَّذِينَ آمَنُوا وَلَيْسَ بِضَارِّهِمْ شَيْئًا إِلَّا بِإِذْنِ اللَّهِ ﴾ [المجادلة: 10]

अर्थात:वास्‍तव में काना फूसी शैतानी काम है ताकि वह उदासीन हों जो ईमान लाये जब कि नहीं है वह हानिकर उन को कुछ परन्‍तु अल्‍लाह की अनुमति से


अल्‍लाह के स्‍मरण को भुलाने और उसके प्रति आलसी करने का शैतान से बड़ा गहरा संबंध है,अल्‍लाह तआ़ला का फरमान है:

﴿ وَإِمَّا يُنسِيَنَّكَ الشَّيْطَانُ ﴾ [الأنعام: 68]

अर्थात:और यदि आप को शैतान भुला दे


दूसरी आयत में फरमाया:

﴿ وَمَا أَنسَانِيهُ إِلَّا الشَّيْطَانُ أَنْ أَذْكُرَهُ ﴾ [الكهف: 63]

अर्थात:और मुझे उस शैतान ही ने भुला दिया कि मैं उसकी चर्चा करूँ


एक और स्‍थान पर फरमाया:

﴿ اسْتَحْوَذَ عَلَيْهِمُ الشَّيْطَانُ فَأَنسَاهُمْ ذِكْرَ اللَّهِ ﴾ [المجادلة: 19]

अर्थात:छा गया है उन पर शैतान और भुला दी है उन को अल्‍लाह की याद


अल्‍लाह के बंदोशैतान अपने मित्रों के द्वारा बंदो को डराने का प्रयास करता है:

﴿ إِنَّمَا ذَلِكُمُ الشَّيْطَانُ يُخَوِّفُ أَوْلِيَاءهُ فَلاَ تَخَافُوهُمْ وَخَافُونِ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ ﴾ [آل عمران: 175]

अर्थात:व‍ह शैतान है जो तुम्‍हें अपने सहयोगियों से डरा रहा है तो उन से न डरो, तथा मुझी से डरो यदि तुम ईमान वाले हो


शैतान प्रलोभनों की अग्नि और शत्रुता का लौ भर‍काता है:

﴿ إِنَّمَا يُرِيدُ الشَّيْطَانُ أَن يُوقِعَ بَيْنَكُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَاء فِي الْخَمْرِ وَالْمَيْسِرِ وَيَصُدَّكُمْ عَن ذِكْرِ اللّهِ وَعَنِ الصَّلاَةِ ﴾ [المائدة: 91]

अर्थात:शैतान तो यही चाहता है कि शराबमदिरातथा जूए द्वारा तुम्‍हारे बीच बैर तथा द्वेष डाल दे और तुम्‍हें अल्‍लाह की याद तथा नमाज़ से रोक दे


दूसरी आयत में आया है:

﴿ وَقُل لِّعِبَادِي يَقُولُواْ الَّتِي هِيَ أَحْسَنُ إِنَّ الشَّيْطَانَ يَنزَغُ بَيْنَهُمْ إِنَّ الشَّيْطَانَ كَانَ لِلإِنْسَانِ عَدُوًّا مُّبِينًا ﴾ [الإسراء: 53]

अर्थात:और आप मेरे भक्‍तों से कह दें कि वह बात बोलें जो उत्‍तम हो वास्‍तव में शैतान उन के बीच बिगाड़ उत्‍पन्‍न करना चाहता है निश्‍चय शैतान मनुष्‍य का खुला शत्रु है


हे अल्‍लाहहम शैतान की दुष्‍टाताओं एवं प्रलोभनों,उसके शिर्क और शडयंत्र,जुनून, भ्रम और अहंकार से तेरा शरण चाहते हैंआप सब अल्‍लाह से क्षमा प्राप्‍त करें,नि:संदेह वह बड़ा क्षमा करने वाला है


द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चाता:

अल्‍लाह पाक पर बंदा का ईमान और विश्‍वास जितना ठोस होगा उतना ही यह ईमान एवं विश्‍वास उसे शैतान से सुरक्षित रखेंगे:

﴿ إِنَّهُ لَيْسَ لَهُ سُلْطَانٌ عَلَى الَّذِينَ آمَنُواْ وَعَلَى رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ ﴾ [النحل: 99]

अर्थात:वस्‍तुत: उस का वश उन पर नहीं है जो ईमान लाये हैं और अपने पालनहार ही पर भरोसा करते है


शैतान ऐसा जीव है कि उसका षडयंत्र एवं दुष्‍टता को उसके पवित्र रचनाकार से शरण मांग के दूर किया जा सकता है,अल्‍लाह तआ़ला ने फरमाया:

﴿ وَإِمَّا يَنزَغَنَّكَ مِنَ الشَّيْطَانِ نَزْغٌ فَاسْتَعِذْ بِاللّهِ إِنَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ ﴾ [الأعراف: 200]

अर्थात:और यदि शैतान आप को उकसाये तो अल्‍लाह से शरण माँगिये नि:संदेह वह सब कुछ सुनने जानने जानने वाला है


शरण मांगने के विषय में अल्‍लाह तआ़ला ने इ़मरान की नेक पत्‍नी का यह कथन बयान किया है:

﴿ وَإِنِّي سَمَّيْتُهَا مَرْيَمَ وِإِنِّي أُعِيذُهَا بِكَ وَذُرِّيَّتَهَا مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ ﴾ [آل عمران: 36]

अर्थात:और मैं ने उस का नाम मरयम रखा है और मैं ने उसे तथा उस की संतान को धिक्‍कारे हुये शैतान से तेरी शरण में देती हूँ


सूरह الناس का पूरा विषय यही है कि शैतान के भ्रमों से शरण मांगा जाए, इस सूरह में अल्‍लाह की रुबूबियतरब होने,उसकी उलूहियतइश्‍वर होनेऔर लोगों पर उसकी साम्राज्‍य के द्वारा भ्रम डालने वाले शैतान की दुष्‍टता से शरण मांगने का उल्‍लेख आया है,इतने सम्‍मान एवं आदर के साथ अल्‍लाह का शरण मांगने का उल्‍लेख इस बात पर साक्ष्‍य है कि भ्रम डालने वाला शैतानहमारे लिएकितना खतरनाक है,इसी के कारण अल्‍लाह के मखलूक कुफ्र,पाप,संदेह एवं आत्‍मा की इच्‍छा का शिकार हुए...


उ़क़बा बिन आ़मिर रज़ीअल्‍लाहु अंहु कहते हैं कि मैं जह़फा और अबुआ के बीच रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम के साथ चल रहा था कि उसी समय अचानक हमें तेज आंधी और घोद अंधकार ने ढांप लिया तो रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ﴾ قل أعوذ برب الفلق ﴿ और ﴾قل أعوذ برب الناس ﴿ पढ़ने लगे,रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम फरमा रहे थे:ऐ उ़क़बातुम भी इन दोनों को पढ़ कर शरण मांगो,इस लिये कि इन जैसी सूरतों के द्वारा शरण मांगने वाले के जैसा किसी शरण मांगने वाले ने शरण नहीं मांगीउ़क़बा कहते हैं:मैं ने रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम को सुना आप इन्‍हीं दोनों से हमारी इमामत फरमा रहे थे


इस ह़दीस को अबूदाउूद ने वर्णित किया है और अल्‍बानी ने सह़ी कहा है


ऐ ईमानी भाइयोजिस प्रकार अल्‍लाह का शरण मांगने से शैतान भाग जाता है,उसी प्रकार अल्‍लाह तआ़ला का स्‍मरण करने से भी शैतान दूर भाग जाता है,अल्‍लाह के फरमान: ﴾ الْوَسْوَاسِ الْخَنَّاسِ ﴿ की व्‍याख्‍या में इब्‍ने अ़ब्‍बास से वर्णित है कि:शैतान मनुष्‍य के हृदय पर सवार रहता है,जब वह आलस और भूल का शिकार होता है तो शैतान उसे भ्रम डालता है,और जब अल्‍लाह का स्‍मरण करता है तो दुम दबा कर भाग जाता है


अंत में कहना यह है कि अपने अंदर शैतान की शत्रुता रखनी चाहिये,अल्‍लाह से सहायता मांगनी चाहिए,शैतान से अल्‍लाह की शरण मांग कर अपने ईमान को सशक्‍त करना चाहिए,और हमें इस दुआ़ को अधिक से अधिक पढ़ना चाहिए जो अल्‍लाह ने अपने पैगंबर को सिखाई कि:

﴿ وَقُل رَّبِّ أَعُوذُ بِكَ مِنْ هَمَزَاتِ الشَّيَاطِينِ * وَأَعُوذُ بِكَ رَبِّ أَن يَحْضُرُونِ ﴾ [المؤمنون: 97 ، 98]

अर्थात:और दुआ़ करें कि हे मेरे परवरदिगारमैं शैतानों के भ्रमों से तेरी शरण चाहता हूं और हे रबमैं तेरी शरण चाहता हूं कि वे मेरे पास आजाएं


इसका कारण यह है कि शैतान ही कुफ्र और इसके अतिरिक्‍त समस्‍त पापों का जड़ है...


दरूद व सलाम भेजें...

 





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