• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
 
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | مقالات شرعية   دراسات شرعية   نوازل وشبهات   منبر الجمعة   روافد   من ثمرات المواقع  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    تفسير قوله تعالى: {ولقد صدقكم الله وعده إذ ...
    سعيد مصطفى دياب
  •  
    المبالغة في تشقيق العلم
    عمرو عبدالله ناصر
  •  
    السياسة النبوية في اكتشاف القدرات وتنمية المهارات ...
    د. مراد باخريصة
  •  
    توبة الأمة (خطبة)
    أبو سلمان راجح الحنق
  •  
    هوس الشهرة عند الشباب والفتيات (خطبة)
    عدنان بن سلمان الدريويش
  •  
    كشف الأستار بشرح قصة الثلاثة الذين حبسوا في الغار
    أبو عاصم البركاتي المصري
  •  
    من أقوال السلف في أسماء الله الحسنى: (اللطيف، ...
    فهد بن عبدالعزيز عبدالله الشويرخ
  •  
    {يغشى طائفة منكم}
    د. خالد النجار
  •  
    جوامع الكلم النبوي: دراسة في ثراء المعاني من حديث ...
    د. ثامر عبدالمهدي محمود حتاملة
  •  
    الخشية من الله تعالى (خطبة)
    الشيخ عبدالرحمن بن سعد الشثري
  •  
    حتى لا تفقد قلبك
    بدرية بنت حمد المحيميد
  •  
    وفاة ملكة جمال الكون!
    أ. د. حلمي عبدالحكيم الفقي
  •  
    الإمام أبو بكر الصديق ثاني اثنين في الحياة وبعد ...
    د. محمد بن علي بن جميل المطري
  •  
    حقوق الحيوان
    د. أمير بن محمد المدري
  •  
    حرص النبي صلى الله عليه وسلم على تلاوة آيات ...
    الشيخ أ. د. عرفة بن طنطاوي
  •  
    دعاء الربانيين: مفتاح النصر وسر المحن
    د. مصطفى يعقوب
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / الأسرة والمجتمع / المرأة
علامة باركود

الأم (خطبة) (باللغة الهندية)

الأم (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 26/11/2022 ميلادي - 3/5/1444 هجري

الزيارات: 5677

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

शीर्षक:

माँ

 

अनुवादक:

फैज़ुर रह़मान ह़िफज़र रह़मान तैमी

प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात


अल्लाह के बंदो आज हमारी बातचीत का विषय कठोर प्राण,दिलेर, पिरश्रमी और निष्कपटहस्ती है,जो प्रेम एवं अनुराग का स्रोत है,रह़मत व दयाका केंद्र है,जो सबसे निष्ठावानमित्र और सबसे शुभचिंतक प्रेमी है,वह हस्ती जिस ने आप के लिए नर्स एवं डाक्टर का रोल निभाया,प्रशिक्षक एवं शिक्षक का रोल निभाया,वह उस मारका का सैनिक है जहां न कोई सेना होता है और न कोई युद्ध,बिना सीमा के भी वह रात-रात भर जाग कर निगरानी करती है,अपने कार्य में निष्कपटहै,उसके जैसा कोई मनुष्य निष्कपटनहीं हो सकता,वह दिन रात अपने शरीर एवं प्राण से अपने मिशन में लगी रहती है,उसका कोई माहाना वेतन नहीं जो महीने के अंत में मिल जाया करे,आज हमारी बातचीत उस हस्ती के विषय में है जिसका इस्लाम धर्म ने बड़ा ध्यान रखा है,हमें उसके साथ सुंदर व्यवहार करने और निष्कपटताके साथ उसकी आज्ञाकारिता करने का प्रेरणा दी है,हमारी बातचीत का विषय माँ है।


आप इस अद्भुत घटनेको सुनिये जो एक ऐसे पुजारी एवं ज़ाहिद (धर्मनिष्ठ) व्यक्ति के साथ घटा जिसने स्वयं को नमाज़ एवं वंदना के लिए समर्पित कर दिया था,सह़ीह़ मुस्लिम में नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ह़दीस है: केवल तीन बच्चों के अतिरिक्त माँ की गोद में किसी ने बात नहीं की:ह़ज़रत ई़सा पुत्र मरयम और जरीज (की गवाही देने) वाले ने। जोरैज एक पूजा-पाठ करने वाला व्यक्ति था।उन्होंने नोकीली छत वाली पूजास्थल बनाली।वह उसके अंदर थे कि उनकी माँ आई और वह नमाज़ की स्थापना कर रहे थे।तो उसने पुकार कर कहा:जोरैज उन्होने कहा:मेरे रब (एक ओर) मेरी माँ है और (दूसरी ओर) मेरी नमाज़ है,फिर वह अपनी नमाज़ की ओर ध्यानमग्न हो गए और वह चली गई।जब दूसरा दिन हुआ तो वह आई,वह नमाज़ पढ़ रहे थे।उसने बोलाया:ओजोरैज तो जरीज ने कहा:मेरे पालनहार मेरी माँ है और मेरी नमाज़ है।उन्होंने नमाज़ की ओर ध्यानमग्न किया।वह चली गई,फिर जब अगला दिन हुआ तो वह आई और आवाज़ दी:जोरैज उन्होंने कहा:मेरे पालनहार मेरी माँ है और मेरी नमाज़ है,फिर वह नमाज़ में लग गए,तो उसने कहा:हे अल्लाह वेश्या महिला के मुँह देखने से पहले इसे मृत्यु न देना।बनी इसराईल आपस में जोरैज और उनकी पूजा-पाठ का चर्चा करने लगे।वहाँ एक वेश्या महिला थी जिसका उदाहरण दिया जाता था,वह कहने लगी:यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हारे लिए उसे प्रलोभनमें डाल सकती हूं,कहा:तो उस महिला ने स्वयं को उसके समक्ष प्रस्तुत किया,किन्तु वह उसकी ओर ध्यानमग्न नहीं हुए।वह एक चरवाहे के पास गई जो (धूप और वर्षा में) उनकी पूजास्थल में शरण लिया करता था।उस महिला ने चरवाहे के समक्ष स्वयं को प्रस्तुत किया तो उसने महिला के साथ मुँहकाला किया और उसे गर्भहो गया।जब उसने बच्चे को जन्म दिया तो कहा:यह जोरैज का बच्चा है।लोग उनके पास आए,उन्हें (पूजास्थल से) नीचे आने कहा,उनकी पूजास्थल को गिरा दिया और उन्हे मारने लगे।उन्होंने कहा:तुम लोगों को क्या हुआ है लोगों ने कहा:तुम ने उस वेश्या महिला से बलात्कार किया है और उसने तुम्हारे बच्चे को जन्म दिया है।उन्होंने कहा:बच्चा कहां है वे उसे लेके आए।उन्होंने कहा:मुझे नमाज़ पढ़ लेने दो,फिर उन्होंने नमाज़ पढ़ी,जब नमाज़ समाप्त कर चुके तो बच्चे के पास आए,उसके पेट में उंगली चुभोई और कहा:बच्चे तुम्हारा पिता कौन है उसने उत्तर दिया:अमुक चरवाहा।आपने फरमाया:फिर वे लोग जरीज की ओर लपके,उन्हें चूमते और बरकत प्राप्ति के लिए उनको हाथ लगाते और उन लोगों ने कहा:हम आपकी पूजास्थल सोने (चांदी) से बना देते हैं,उन्होंने कहा:नहीं,इसे मिट्टी से दोबारह उसी प्रकार से बना दो जैसी वह थी तो उन्होंने (वैसा ही) किया... ।


अल्लाह तआ़ला ने उनकी माँ से निकली दुआ़ को स्वीकार कर लिया,बेहतर यह था कि जरीज (नफिल नमाज़ों में व्यस्थ रहने कि बजाए) अपनी माँ की बात सुनते जो कि सर्वश्रेष्ठ वाजिबों में से है।


इमाम नौवी फरमाते हैं: नफिल नमाज़ में ध्यान पूर्वक डूबे रहना मुस्तह़ब है,वाजिब नहीं,जबकि माँ की बात मानना और उसकी आज्ञाकारिता का पालन करना वाजिब है और उसका अवज्ञा ह़राम (निषिद्ध) है ।समाप्त


बल्कि अल्लाह ने मुशिरक माता-पिता के साथ भी सुंदर व्यवहार करने का आदेश दिया है:

﴿ وَإِنْ جَاهَدَاكَ عَلَى أَنْ تُشْرِكَ بِي مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا وَصَاحِبْهُمَا فِي الدُّنْيَا مَعْرُوفًا ﴾ [لقمان: 15]

 

अर्थात:और यदि वह दोनों दबाव डालें तुम पर कि तुम साझी बनाओ मेरा उसे जिस का तुम को कोई ज्ञान नहीं,तो न मानो उन दोनों की बात और उन के साथ रहो संसार में सुचार रूप से।

आप सोच सकते हैं कि यदि माता-पिता मोमिन हों तो आप पर उनके क्या अधिकार हो सकते हैं


आइए-मेरे भाइयो-हम इस महान आयत पर एक नज़र डालते हैं जो हमेशा आपने सुना है:

﴿ وَقَضَى رَبُّكَ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا إِيَّاهُ وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا ﴾ [الإسراء: 23]

 

अर्थात:और (हे मुनुष्य) तेरे पालनहार ने आदेश दिया है कि उस के सिवा किसी की वंदना न करो तथा माता-पिता के साथ उपकार करो।

आप विचार करें कि किस प्रकार से अल्लाह तआ़ला ने माता-पिता के अधिकारों को अपने अधिकार के साथ बयान किया है,जबकि अपने अधिकार के साथ किसी का अधिकार बयान नहीं किया।


अल्लाह ने माता-पिता के साथ सुंदर व्यवहार करने का आदेश दिया,इस आदेश में इह़सान (दया/कृपा) के समस्त मौखि़क एवं व्यवहारिकअर्थ शामिल हैं,इस समानताके पश्चात विशेष रूप से यह चेतावनी दी कि:

﴿ إِمَّا يَبْلُغَنَّ عِنْدَكَ الْكِبَرَ أَحَدُهُمَا أَوْ كِلَاهُمَا فَلَا تَقُلْ لَهُمَا أُفٍّ ﴾ [الإسراء: 23]

 

अर्थात:यदि तेरे पास दोनों में से एक वृद्धावस्था को पहुँच जाये अथवा दोनों,तो उन्हें उफ तक न कहो।

मामूली प्रकार के शाब्दिक कष्ट से भी रोका गया है ﴾ وَلاَ تَنْهَرْهُمَا ﴿ इसमे किसी भी प्रकार के ऐसे व्यवहार से रोका गया है जिससे उनको दु:ख हो,अ़त़ा बिन रिबाह़ का कथन है:उनके सामने अपने हाथ न झाड़ो।समाप्त


जब अल्लाह ने बुरी बात और बुरे कार्य से रोका तो उसके पश्चात अच्छी बात एवं सुंदर व्यवहार का आदेश दिया:

﴿ وَقُلْ لَهُمَا قَوْلاً كَرِيمًا﴾

अर्थात:और उनसे सादर बात बोलो।


इब्ने कसीर फरमाते हैं:अर्थात:कोमल बात,अच्छी बात और प्यारी बात करना,वह भीआदर,सम्मान एवं आदर के साथ।समाप्त


अल्लाह ने माता-पिता के सामने विनम्रता अपनाने का आदेश दिया है,अत: फरमाया:

﴿ وَاخْفِضْ لَهُمَا جَنَاحَ الذُّلِّ مِنَ الرَّحْمَةِ ﴾ [الإسراء: 24]

अर्थात:और उन के लिये विनम्रता का बाज़ू दया से झका दो।

माता-पिता के प्रति इन शिक्षाओं की समाप्ति इस प्रकार से की कि:उनके हित में दुआ़एं करते रहना:


﴿ وَقُلْ رَبِّ ارْحَمْهُمَا كَمَا رَبَّيَانِي صَغِيرًا ﴾.

अर्थात:और प्रार्थना करो:हे मेरे पालनहार उन दोनों पर दया कर,जैसे उन दोनों ने बाल्यावस्था में मेरा लालन-पालन किया है।


मेरे प्रिय भाइयो यदि आपके लिए यह संभव हो कि आप प्रत्येक दिन अपने माता-पिता का दर्शन करें और उनके पास बैठें,तो ऐसा अवश्य करें।यदि आप उनसे दूर हों तो फून पर बात करलें,क्योंकि यह भी उनकी आज्ञाकारिता में से है और उनको प्रसन्न करने का तरीक़ा है,उनकी मांग से पहले उनकी आवश्यकता की पूर्ति करें,उनकी आवश्यकताओं के विषय में उनसे पूछें और उनकी स्थिति का निरीक्षणलेते रहें,उनके लिए अल्लाह से दुआ़ करें,उनकी मांग पर प्रसन्नता का और उनके आदेश के पालन पर प्रसन्नता का प्रदर्शन करें,समय समय पर उनको उपहारदेते रहें,और आप के पास धन है तो अधिक उपहार एवं भेंट दें,उनको इस्लाम की शिक्षा दें और ऐसी विद्या सिखाएं जिनसे अल्लाह तआ़ला के यहाँ उनका स्थान उच्च हो,सलाम करते हुए उनके ललाट को चूमें,उनके दर्शन के लिए अपनी संतानों को साथ ले जाएं,उनके पुत्र एवं पुत्रियों की आवश्यकताओं की पूर्ति करें,क्योंकि इससे उनको प्रसन्नता मिलती है,उनके समक्ष अपने दु:खोंको बयान न करें,क्योंकि इससे उनको बहुत दु:ख होता है,उनसे सलाह मांगे,और अपने महत्वपूर्ण मामलों से उन्हें अवगत रखें,अपने भाइयों और बहनों के प्रति अपनी सहानुभूति एवं चिंता का प्रदर्शन करें,क्योंकि आपके आपसी एकता एवं मिलन से उनको अपार प्रसन्नता होती है,उनके प्रिय विषयों पर उनके सामने चर्चा करें,एक दाई़ का कहना है:एक माँ अपने एक बेटे से बहुत प्रसन्न थी,जबकि उसके सारे ही बेटे अच्छे थे,तो उन्होंने उसका कारण पूछा,तो उस बेटे ने उत्तर दिया:मेरी माँ को प्रसन्न करने की एक चाभी ऐसी है जिसे मेरे अन्य भाई प्रयोग नहीं कर सके,पूछने पर बताया कि:बहुत आसान सी चाभी है,मैं उनसे साथ ऐसे विषयों पर चर्चा करता हूं जिनकी उनको चिंता रहती है,अमुक का विवाह हो गया,अमुक को संतान हुई,अमुक रोगी हुआ तो मैं उसके दर्शन को गया,ऐसे ही अन्य मामले...जबकि मेरे अन्य भाई सामान्य रूप से उनके साथ रचनात्मकमामले और व्यापार के विषय में चर्चा करते हैं।


मेरे भाइयो माँ की आज्ञाकारिता के अनेक दरवाजे हैं,आप प्रयास करें कि समस्त दरवाजे से प्रवेश हों,ये समस्त तरीक़े अपने पिता के साथ भी अपनाएं,उनके जीवन को गनीमत जानें,हे अल्लाह हमें अपने माता-पिता के साथ सुंदर व्यवहार करने की तौफीक़ प्रदान कर,हमारी कोताही को क्षमा प्रदान कर,अल्लाह तआ़ला हमें हमारे ज्ञान लाभ पहुंचाए,हमें लाभदायक विद्या प्रदान करे,आप अल्लाह से क्षमा मांगें,नि:संदेह वह अति क्षमाशील है।


द्वतीय उपदेश:

الحمد لله كثيرًا، وسبحان الله بكرة وأصيلاً، وصلى الله وسلم على خاتم رسله تسليمًا وفيرًا.


प्रशंसाओं के पश्चात:

अल्लाह के पुस्तक से अधिक वाक्पटुव भाषणपटुकोई पुस्तक नहीं,यह पुस्तक बयान करती है कि हमारी माताओं ने हमल में और दूध पिलाने में हमारी लिए कितनी कठिनाइयों को झेला,अल्लाह तआ़ला अपनी पवित्र पुस्तक में फरमाता है:

﴿ وَوَصَّيْنَا الْإِنْسَانَ بِوَالِدَيْهِ إِحْسَانًا حَمَلَتْهُ أُمُّهُ كُرْهًا وَوَضَعَتْهُ كُرْهًا وَحَمْلُهُ وَفِصَالُهُ ثَلَاثُونَ شَهْرًا ﴾ [الأحقاف: 15]

अर्थात:और हम ने निर्देश दिया है मनुष्य को अपने माता-पिता के साथ उपकार करने का,उसे गर्भ में रखा है उस की माँ ने दु:ख़ झेल कर,तथा जन्म दिया उस को दु:ख झेल कर,तथा उस के गर्भ में रखने तथा दूध छुड़ाने की अवधि तीस महीने रही।


एक दूसरी आयत में अल्लाह फरमाता है:

﴿ وَوَصَّيْنَا الْإِنْسَانَ بِوَالِدَيْهِ حَمَلَتْهُ أُمُّهُ وَهْنًا عَلَى وَهْنٍ وَفِصَالُهُ فِي عَامَيْنِ أَنِ اشْكُرْ لِي وَلِوَالِدَيْكَ إِلَيَّ الْمَصِيرُ ﴾ [لقمان: 14]

अर्थात:और हम ने आदेश दिया है मनुष्यों को अपने माता-पिता के संबन्ध में,अपने गर्भ में रखा उसे उस की माता ने दु:ख पर दु:ख झेल कर,और उस का दूध छुड़ाया दो वर्ष में कि तुम कृतज्ञ रहो मेरे और अपनी माता-पिता के,और मेरी ही ओर (तुम्हें) फिर आना है।


क़तादह फरमाते हैं:इस आयत में "وهنًا على وهن" के अर्थ हैं:दु:ख पर दु:ख उठा कर।


ए वह व्यक्ति जिसके माता-पिता इस संसार से गुजर चुके हैं,आपके पास भी पुण्य के अनेक अवसर हैं,अनेक ऐसे लोग हैं जो अपने गुज़रे हुए माता-पिता के साथ सुंदर व्यवहार के ऐसे नमूने प्रस्तुत करते हैं जो कुछ ऐसे लोग भी नहीं प्रस्तुत कर पाते जिनके माता-पिता जीवित हैं, اللہ المستعان आप स्वयं को सुधारें और अधिक से अधिक माता-पिता के लिए दुआ़ करें,सह़ीह़ मुस्लिम में मरफूअ़न यह ह़दीस आई है: जब मनुष्य की मृत्यु हो जाए तो उसका अ़मल भी बंद हो जाता है सिवाए तीन अ़मल के (वे बंद नहीं होते):सदक़ा जारिया (ऐसा दान जो जारी हो) अथवा ऐसा ज्ञान जिससे लाभ उठाया जाए अथवा सदाचारी संतान जो उसके लिए दुआ़ करे ।


माता-पिता की ओर से दान किया करें,उनके परिजनों एवं मित्रों से के साथ सुंदर व्यवहार करें,उनके वचनों को पूरा करें,मुस्नद अह़मद और सुनने अबी दाउूद की रिवायत है कि:एक व्यक्ति आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और कहा:हे अल्लाह के रसूल मेरे माता-पिता के दिहांत के पश्चात उनके साथ सुंदर व्यवहार एवं उनकी आज्ञाकारिता करने का कोई तरीक़ा है आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: हां।उनके लिए दुआ़ करना,उनके लिए क्षमा मांगना,उनके वचनों को पूरा करना,ऐसे परिजनों से मेल-जूल रखना कि उन (माता-पिता) के बिना उनसे मिलाप न हो सकता था और उनके मित्रों का आदर करना ।


मेरे भाइयो माता-पिता के साथ सुंदर व्यवहार और उनकी आज्ञाकारिता एक महान वंदना है जो आप को अल्लाह से निकट करता है,यह अ़मल बरकत एवं अल्लाह की तौफीक़ का कारण है,इससे मामले आसान होते हैं,यह आपकी रक्षा का कारण है,यह इसका भी एक बड़ा कारण है कि आपकी संतान आपके साथ सुंदर व्यवहार करे,सामान्य रूप से यह दुनिया एवं आख़िरत की तौफीक़ का रहस्यहै।


अंत में-अल्लाह आप पर कृपा फरमाए-आप मार्ग दर्शक एवं शुभसूचना देने वाले नबी मोह़म्मद सलल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दरूद व सलाम भेजें


अनुवादक:

फैज़ुर रह़मान ह़िफज़र रह़मान तैमी

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • خطبة: (تجري بهم أعمالهم) (باللغة الهندية)
  • فاستغفروا لذنوبهم (خطبة) (باللغة الهندية)
  • أتأذن لي أن أعطيه الأشياخ؟! (خطبة) (باللغة الهندية)
  • من مشكاة النبوة (7) الطفلة والصلاة!! (خطبة) (باللغة الهندية)
  • من مشكاة النبوة (8) حفظ الجميل (خطبة) (باللغة الهندية)
  • الموت (خطبة) (باللغة الهندية)
  • الإحسان إلى الناس ونفعهم (خطبة) (باللغة الهندية)
  • أمك ثم أمك ثم أمك (خطبة)

مختارات من الشبكة

  • عيد الأم بين الوهم والحقيقة: حكم الاحتفال بعيد الأم (PDF)(كتاب - مكتبة الألوكة)
  • اللغة الأم، والأم(مقالة - حضارة الكلمة)
  • إهداء الأم في ما يسمى بعيد الأم(مقالة - آفاق الشريعة)
  • هل أحج عن أبي أولا أم عن أمي؟(مقالة - ملفات خاصة)
  • إحياء الحديث وأثره فى حركة الفقه التحرريه فى القاة الهنديه(مقالة - آفاق الشريعة)
  • حدثوني عن قلب الأم(مقالة - ملفات خاصة)
  • حكم الاحتفال بعيد الأم(مقالة - ملفات خاصة)
  • علاج آلام الأقدام(مقالة - موقع د. عبدالعزيز بن سعد الدغيثر)
  • حبا وكرامة(مقالة - آفاق الشريعة)
  • مسائل في ميراث أم الأم وأم الأب(مقالة - موقع الشيخ فيصل بن عبدالعزيز آل مبارك)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • مسلمون يقيمون ندوة مجتمعية عن الصحة النفسية في كانبرا
  • أول مؤتمر دعوي من نوعه في ليستر بمشاركة أكثر من 100 مؤسسة إسلامية
  • بدأ تطوير مسجد الكاف كامبونج ملايو في سنغافورة
  • أهالي قرية شمبولات يحتفلون بافتتاح أول مسجد بعد أعوام من الانتظار
  • دورات إسلامية وصحية متكاملة للأطفال بمدينة دروججانوفسكي
  • برينجافور تحتفل بالذكرى الـ 19 لافتتاح مسجدها التاريخي
  • أكثر من 70 متسابقا يشاركون في المسابقة القرآنية الثامنة في أزناكاييفو
  • إعادة افتتاح مسجد تاريخي في أغدام بأذربيجان

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 5/2/1447هـ - الساعة: 12:30
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب