• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | مقالات شرعية   دراسات شرعية   نوازل وشبهات   منبر الجمعة   روافد   من ثمرات المواقع  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    كن بلسما (خطبة)
    سامي بن عيضه المالكي
  •  
    خطبة: أهمية مراقبة الله في حياة الشباب
    عدنان بن سلمان الدريويش
  •  
    أخلاق البائع المسلم (خطبة)
    عبدالله بن عبده نعمان العواضي
  •  
    منهج القرآن الكريم في تنمية التفكير العلمي: كيف ...
    محمد نواف الضعيفي
  •  
    أيام أبي بكر الصديق رضي الله عنه (خطبة)
    ساير بن هليل المسباح
  •  
    الله لطيف بعباده
    محمد بن عبدالله العبدلي
  •  
    خطبة (إنكم تشركون)
    الدكتور علي بن عبدالعزيز الشبل
  •  
    لطائف من مجموع فتاوى شيخ الإسلام ابن تيمية
    سائد بن جمال دياربكرلي
  •  
    فصل آخر: في معنى قوله تعالى: {فإذا سويته ونفخت ...
    فواز بن علي بن عباس السليماني
  •  
    علة حديث: ((لا تؤذي امرأة زوجها في الدنيا إلا ...
    د. محمد بن علي بن جميل المطري
  •  
    التذكير بأيام الله (خطبة)
    د. عبد الرقيب الراشدي
  •  
    طعام وشراب النبي صلى الله عليه وسلم (خطبة)
    الشيخ عبدالرحمن بن سعد الشثري
  •  
    التسبيح سبب للحصول على ألف حسنة في لحظات
    د. خالد بن محمود بن عبدالعزيز الجهني
  •  
    التحذير من الكسل (1)
    د. أمين بن عبدالله الشقاوي
  •  
    حين يتجلى لطف الله
    عبدالله بن إبراهيم الحضريتي
  •  
    خطبة: الحذر من الظلم
    الشيخ الدكتور صالح بن مقبل العصيمي ...
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / مواضيع عامة
علامة باركود

بين النفس والعقل (1) (باللغة الهندية)

بين النفس والعقل (1) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 15/10/2022 ميلادي - 20/3/1444 هجري

الزيارات: 6487

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

शीर्षक:

बुद्धि एवं आत्‍मा के बीच1


अनुवादक:

फैज़ुर रह़मान हि़फज़ुर रह़मान तैमी

प्रशंसाओं के पश्‍चात


मैं आप को और स्‍वयं को अल्‍लाह का तक्‍़वाधर्मनिष्‍ठाअपनाने की वसीयत करता हूँ,हमारा जीवन बीज बोने एवं फसल रोपने का समय है,और जिस दिन अल्‍लाह से हमारी मोलाक़ात होगी,उस दिन हमें उसका फल एवं फसल मिलेगा,अल्‍लाह तआ़ला फरमाता है:

﴿ يَوْمَ تَجِدُ كُلُّ نَفْسٍ مَا عَمِلَتْ مِنْ خَيْرٍ مُحْضَرًا وَمَا عَمِلَتْ مِنْ سُوءٍ تَوَدُّ لَوْ أَنَّ بَيْنَهَا وَبَيْنَهُ أَمَدًا بَعِيدًا وَيُحَذِّرُكُمُ اللَّهُ نَفْسَهُ وَاللَّهُ رَءُوفٌ بِالْعِبَادِ ﴾[آل عمران: 30]

अर्थात:जिस दिन प्रत्‍येक प्राणी ने जो सुकर्म किया है,उसे उपस्थित पायेगा,तथा जिस ने कुकर्म किया है वह कामना करेगा कि उस के तथा उस के कुकर्म के बीच बड़ी दूरी होतीतथा अल्‍लाह तुम्‍हें स्‍वयं से डराता है और अल्‍लाह अपने भक्‍तों के लिये अति करूणामय है


रह़मान के बंदोलोगों में से कोई महान हस्‍ती आजाए और तीन बार क़सम खा करकोई बात करनी चाहेतो लोग अपनी गरदनें उूंची कर लें गे ताकि उसकी बात सुन सकें,और अपनी विशेष बात से भी अधिक उस बात पर ध्‍यान देंगे,अल्‍लाह के बंदेमैं आप के समक्ष एक प्रशन्‍न प्रस्‍तुत करता हूँ:क़ुरान पाक में परवरदिगार कि सबसे लंबी क़सम किया हैᣛऔर यह क़सम किस चीज़ के विषय में हैनिरंतर ग्‍यारहक़समें का उल्‍लेख है,उसके पश्‍चात उत्‍तर आया है:

﴿ قَدْ أَفْلَحَ مَنْ زَكَّاهَا * وَقَدْ خَابَ مَنْ دَسَّاهَا ﴾[الشمس: 9، 10]

अर्थात:वह सफल हो गया जिस ने अपने जीव का सुद्धिकरण कियातथा वह क्षति में पड़ गया जिस ने उसेपाप मेंधंसा दिया


अल्‍लाह ने चीज़ों की क़सम खाई है,उनमें आत्‍मा भी शामिल है


प्रिय सज्‍जनोंअल्‍लाह ने मनुष्‍य के अंदर बुद्धि एवं आत्‍मा पैदा किया,अल्‍लाह ने बुद्धि इस लिए पैदा किया ताकिसीधे मार्ग कानिर्देश करे,विचार विमर्श करे और अपने मालिक को मार्ग दिखाए,और आत्‍मा को इस लिए पैदा किया है कि वह इच्‍छा करे,अत: आत्‍मा ही प्रेम व नफरत करता है,प्रसन्‍न व उदास होता एवं क्रोध करता है,जब बुद्धि का काम यह है कि वह बुद्धि वाले के सामने आत्‍मा की इच्‍छा,लालसा एवं उद्देश्‍यों में सही व गलत की पहचान करता,अच्‍छा व बुरे व अंतर बताता,और लाभ व हानि से अवज्ञत करता है


अल्‍लाह के बंदोलोगों के आत्‍मा इच्‍छा व लालसा के प्रकार एवं मात्रा में भिन्‍न्‍ होते हैं,उदाहरणस्‍वरूप धन से प्रेम,यही कारण है कि बुद्धि को पैदा किया गया और शरीअ़तों को उतारा गया ताकि आत्‍मा की इच्‍छा पर नियंत्रण किया जा सके,अत: रब तआ़ला के आदेशों एवं नियमों में ऐसा सामान्‍य प्रणाली एवं नियम पाया जाता है जिस में पूरा समाज एक समान है


बुद्धि को वह़्य से निर्देश एवं आलोक मिलता है,बिल्‍कुल आंख के जैसा यदि वह स्‍वस्‍थ भी हो तो अंधेरे में चीज़ों को नहीं देख सकती,किन्‍तु जब वह स्‍थान आलोकित हो जाए तो सारी चीज़ें नजर आने लगती हैं,अत: वह़्य के बिना बुद्धि प्रार्थना के मामले में गुमराह हो जाती है,अल्‍लाह तआ़ला का कथन है:

﴿ أَوَمَنْ كَانَ مَيْتًا فَأَحْيَيْنَاهُ وَجَعَلْنَا لَهُ نُورًا يَمْشِي بِهِ فِي النَّاسِ كَمَنْ مَثَلُهُ فِي الظُّلُمَاتِ لَيْسَ بِخَارِجٍ مِنْهَا كَذَلِكَ زُيِّنَ لِلْكَافِرِينَ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ ﴾

अर्थात:तो क्‍या जो निर्जीव रहा हो फिर हम ने उसे जीवन प्रदान किया हो तथा उस के लिये प्रकाश बना दिया हो जिस के उजाले में वह लोगों के बीच चल रहा हो,उस जैसा हो सकता है जो अंधेरों में हो उस से निकल न रहा होइसी प्रकार काफिरों के लिए उन के कुकर्म सुन्‍दर बना दिये गये हैं


तथा अल्‍लाह ने अधिक फरमाया:

﴿ وَكَذَلِكَ أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ رُوحًا مِنْ أَمْرِنَا مَا كُنْتَ تَدْرِي مَا الْكِتَابُ وَلَا الْإِيمَانُ وَلَكِنْ جَعَلْنَاهُ نُورًا نَهْدِي بِهِ مَنْ نَشَاءُ مِنْ عِبَادِنَا وَإِنَّكَ لَتَهْدِي إِلَى صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ ﴾ [الشورى: 52]

अर्थात:और इसी प्रकार हम ने व‍ह़्यीप्रकाशनाकी है आप की ओर अपने आदेश की रूह़क़ुर्आनआप नहीं जानते थे कि पुस्‍तक क्‍या है तथा ईमान क्‍या हैपरन्‍तु हम ने इसे बना दिया एक ज्‍योति,हम मार्ग दिखाते हैं इस के द्वारा जिसे चाहते हैं अपने भक्‍तों में से,और वस्‍तुत: आप सीधी राह दिखा रहे हैं


रह़मान के बंदोअल्‍लाह ने बुद्धि की निंदा नहीं की है,किन्‍तु आत्‍मा की निंदा हुई है,जब बुद्धि की बात होता है निंदा इस बात की होती है कि विचार विमर्श के लिए उसे प्रयोग न किया जाए,अल्‍लाह तआ़ला का फरमान है:

﴿ لَهُمْ قُلُوبٌ لَا يَفْقَهُونَ بِهَا ﴾[الأعراف: 179]

अर्थात:उन के पास दिल हैं जिन से सोच विचार नहीं करते


अधिक फरमाया:

﴿ أَفَلَا تَعْقِلُونَ ﴾ [البقرة: 44]

अर्थात:क्‍या तुम समझ नहीं रखते


फरमाया कि:

﴿ انْظُرْ كَيْفَ نُصَرِّفُ الْآيَاتِ لَعَلَّهُمْ يَفْقَهُونَ ﴾[الأنعام: 65]

अर्थात:देखिये कि हम किस प्रकार आयतों का वर्णन कर रहें हैं कि संभवत: वह समझ जायें


तथा यह कि:

﴿ أَفَلَا تَتَفَكَّرُونَ ﴾ [الأنعام: 50]

अर्थात:क्‍या तुम सोच विचार नहीं करते


किन्‍तु आत्‍माकी जब बात आती है तो उसकी निंदा की जाती है,इस लिए कि वह बुद्धि को बुराई एवं पाप का आदेश देता है,अल्‍लाह का कथन है:

﴿ إِنَّ النَّفْسَ لَأَمَّارَةٌ بِالسُّوءِ إِلَّا مَا رَحِمَ رَبِّي ﴾ [يوسف: 53]

अर्थात:मन तो बुराई पर उभारता है परन्‍तु जिस पर मेरा पालनहार दया कर दे


अत: इस आयत में आत्‍मा के साथ अपवाद का उल्‍लेख हुआ है,क्‍योंकि आत्‍मा की वास्‍तविकता यही है कि वह पाप का आदेश देता है,यही कारण है कि अधिकतर ही आत्‍मा से सचेत किया गया है,जबकि एक बार भी बुद्धि से सचेत नहीं किया गया है


नबी ने अपनी बुद्धि से शरण नहीं मांगीकिन्‍तु आत्‍मा की दुष्‍टता से शरण मांगने का उल्‍लेख आया है,अत: خطبة الحاجة में आप का फरमान है:

((ونعوذ بالله من شرور أنفسنا))

अर्थात:हम अपने आत्‍मा की दुष्टता से अल्‍लाह का शरण मांगते हैं


आप फरमाते हैं:

((أعوذ بك من شر نفسي وشر الشيطان))

अर्थात:मैं अपने आत्‍मा की दुष्‍टता से और शैतान की दुष्‍टता से तेरा शरण चाहता हूँ


इस ह़दीस को अह़मद,अबूदाउूद,तिरमिज़ी और निसाई ने व‍र्णन किया है


आत्‍मा का मामला यह है कि कभी उस के समक्ष पुण्‍य एवं भलाई प्रस्‍तुत की जाती है तो ठोकरा देता है और कभी पाप को सुंदर बना कर प्रस्‍तुत करता है,इसी लिए आत्‍मा की दुष्‍टता से शरण मांगने का आदेश आया है,अल्‍लाह तआ़ला का वर्णन है:

﴿ فَطَوَّعَتْ لَهُ نَفْسُهُ قَتْلَ أَخِيهِ فَقَتَلَهُ فَأَصْبَحَ مِنَ الْخَاسِرِينَ ﴾ [المائدة: 30]

अर्थात:अंतत: उस ने स्‍वयं को अपने भीई की हत्‍या पर तय्यार कर लिया,और विनाशों में हो गया


सामुरी ने कहा:

﴿ وَكَذَلِكَ سَوَّلَتْ لِي نَفْسِي ﴾ [طه: 96]

अर्थात:और इसी प्रकार सुझा दिया मुझे मेरे मन ने


तथा यह कि:

﴿ قَالَ بَلْ سَوَّلَتْ لَكُمْ أَنْفُسُكُمْ أَمْرًا ﴾ [يوسف: 83]

अर्थात:उसपिताने कहा:ऐसा नहीं,बल्कि तुम्‍हारे दिलों ने एक बात बना ली है


अल्‍लाह तआ़ला ने यहूदी के विषय में फरमाया:

﴿ أَفَتَطْمَعُونَ أَنْ يُؤْمِنُوا لَكُمْ وَقَدْ كَانَ فَرِيقٌ مِنْهُمْ يَسْمَعُونَ كَلَامَ اللَّهِ ثُمَّ يُحَرِّفُونَهُ مِنْ بَعْدِ مَا عَقَلُوهُ وَهُمْ يَعْلَمُونَ ﴾ [البقرة: 75]

अर्थात:क्‍या तुम आशा रखते हो कियहूदीतुम्‍हारी बात मान लेंगे,जब कि उन में एक गिरोह ऐसा था जो अल्‍लाह की वाणीतौरातको सुनता था,और समझ जाने के बाद जान बूझ कर उस में परिवर्तन कर देता था


समसया का असल कारण उनके आत्‍मा हैं जो ईर्ष्‍या व डाह एव अहंकार व घमंड से भरे हुए थे,आप इस आयत पर विचार करें:

﴿ يُحَرِّفُونَهُ مِنْ بَعْدِ مَا عَقَلُوهُ وَهُمْ يَعْلَمُونَ ﴾ [البقرة: 75]

अर्थात: समझ जाने के बाद जान बूझ कर उस में परिवर्तन कर देता था


एक अन्‍य आयत में आया है कि ईर्ष्‍या ही उनके कुफ्र का कारण भी है:

﴿ بِئْسَمَا اشْتَرَوْا بِهِ أَنْفُسَهُمْ أَنْ يَكْفُرُوا بِمَا أَنْزَلَ اللَّهُ بَغْيًا أَنْ يُنَزِّلَ اللَّهُ مِنْ فَضْلِهِ عَلَى مَنْ يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ ﴾ [البقرة: 90]

अर्थात:अल्‍लाह की उतारी हुईपुस्‍तकका इन्‍कार कर के बुरे बदले पर इन्‍हों ने अपने प्राणों को बेच दिया,इस द्वेष के कारण कि अल्‍लाह ने अपना प्रदानप्रकाशनाअपने जिस भक्‍त पर चाहा उतार दिया


इसी प्रकार मुशरिकों के आत्‍माएं अपनी इच्‍छाओं एवं लालसाओं में मगन रहते हैं,अत: मनुष्‍य की नबूवत काइनकार करते हैं और पत्‍थर के बनाए हुए मूर्ति की पूजा करते हैं,अल्‍लाह तआ़ला ने यह सूचना देते हुए फरमाया कि फिरऔ़न और उसके समुदाय ने आयतों का इनकार किय,उसकी वास्‍तविकता किया थी:

﴿ وَجَحَدُوا بِهَا وَاسْتَيْقَنَتْهَا أَنْفُسُهُمْ ظُلْمًا وَعُلُوًّا ﴾ [النمل: 14]

अर्थात:तथा उन्‍होंने नकार दिया उन्‍हें,अत्‍याचार तथा अभिमान के कारण,जब कि उन के दिलों ने उन का विश्‍वास कर लिया


अल्‍लाह तआ़ला मुझे और आप को क़ुरान व सुन्‍नत की बरकत से लाभान्वित फरमाए,उन में जो आयत और नीति की बात आई है,उससे हमें लाभ पहुंचाए,आप अल्‍लाह से क्षमा मांगें,निसंदेह वह अति क्षमी है


द्वितीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चात:

आत्‍माओं का आपस में भिन्‍न होना संसार में अल्‍लाह तआ़ला की बनाइ हुई सुन्‍नतपरंपराहै,इससे संतुलन बना रहता है और एक दूसरे की आवश्‍यकता पूरी होती रहती है,यदि लोगों का इच्‍छा भिन्‍न न होता तो सारी व्‍यवस्‍थाएं थप पड़ जातीं और बाजार मंदा पड़ जाता


रह़मान के बंदोबंदों के प्रति अल्‍लाह की कृपा व दया है कि इस्‍लामी आदेश एवं अनिवार्यताएं मनुष्‍य के स्‍वभाव के अनुकूल हैं,अत: कंवारी लड़की के स्‍वभाव में ह़यालज्‍जाहोती है,इस लिएउसकी चुप्‍पी को उसकी अनुमतिबताई गई,क्‍योंकि इनकार करने का साहस तो उसमें ब‍हुत होता है,अत: स्‍वीकृति व्‍यक्‍त करने से वह झिझकती है,यही कारण है कि निकाह़ के समय वलीअभिभावककी उपस्थिति को शर्त माना गया है,ताकि विवाह की बात चीत हो तो पति के समक्ष महिला की ओर से एक व्‍यक्ति उपस्थित हो जो उसके अधिकारों की रक्षा करे,इसी लिए जब वह किसी व्‍यक्ति से रूची न होने के कारण विवाह से इनकार कर दे तो इनकार की स्थिति में वलीअभिभावक की शर्त नहीं है,मह़रमवह परिजन जिससे विवाह अवैध हैकी उपस्थिति तनहाई में उसकी मानसिक दुर्बलता को कम कर देती है,तथा यह कि महिला को तीव्रता,विवाद और झगड़े के स्‍थानों पर रखना उचित नहीं समझा गया,इस लिए नहीं कि वह बुद्धि में दुर्बल है,बल्कि उसके स्‍वभाव में पाए जाने वाले आत्‍मा के प्रभाव के कारण,यदि दंडों का लागू करना औरशरई़दंडों के लागू करना महिला पर छोड़ दिया जाए तो यह निलंबित हो कर रह जाएगी,इसका कारण यह है कि ये आदेश व अनिवार्यता महिला के स्‍वभाव के अनुकूल नहीं हैं,पवित्रा एवं प्रशंसा है अल्‍लाह के लिए:

﴿ أَلَا يَعْلَمُ مَنْ خَلَقَ وَهُوَ اللَّطِيفُ الْخَبِيرُ ﴾ [الملك: 14]

अर्थात:क्‍या वह नहीं आनेगा जिस ने उत्‍पन्‍न कियाऔर वह सूक्ष्‍मदर्शक सर्व सूचित है


रह़मान के बंदोबुद्धि के साथ आत्‍मा का टकराव आत्‍मा की इच्‍छा के समय प्रकट होती है,अत: जब वह आत्‍मा की इच्छा पर नियंत्रन बना लेती है तो आत्‍मा अपने ज्ञान व अनुभव और ईमान के अनुसार बुद्धि के साथ व्‍यवहार करता है और उसे अपने जाल में फसाने का प्रयास करता है ताकि उसका उद्देश्‍य पूरा हो सके,ईमान जब प्रबल हो तो वह कुछ और बहाने अपना ता है और जब ईमान कमजोर हो तो कुछ और बहाने अपना ता है,और जब स्‍पष्‍ट पाप के साथ वह अपनी इच्‍छा पूरी करने में विफल हो जाता है तो पाप को कुछ अच्‍छी बातों में मिला करअपनी इच्‍छापूरी करता करता है


आत्‍मा के विषय में अधिक चर्चा आगामी उपदेश में होगा

إن شاء اللهُ

 

आप पर दरूद व सलाम भेजते रहें

صلى الله عليه وسلم.

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • بين النفس والعقل (1)
  • بين النفس والعقل (2)
  • بين النفس والعقل (1) (باللغة الأردية)
  • بين النفس والعقل (2) (باللغة الأردية)
  • بين النفس والعقل (3) (باللغة الأردية)
  • بين النفس والعقل (3) تزكية النفس (باللغة الهندية)
  • بين النفس والعقل (2) (باللغة الهندية)
  • الله الستير (خطبة) (باللغة الهندية)
  • حقوق النفس على صاحبها (خطبة)
  • العقل المظلوم
  • خطبة: بين النفس والعقل (1) - باللغة البنغالية
  • بين النفس والعقل (1) (خطبة) باللغة النيبالية
  • خطبة: بين النفس والعقل (2) - باللغة البنغالية

مختارات من الشبكة

  • العقل في معاجم العرب: ميزان الفكر وقيد الهوى(مقالة - حضارة الكلمة)
  • أسماء العقل ومشتقاته في القرآن(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الهداية والعقل(مقالة - ثقافة ومعرفة)
  • الذكاء... عوالم متعددة تتجاوز العقل الحسابي(مقالة - ثقافة ومعرفة)
  • الغضب من لهيب النيران(مقالة - آفاق الشريعة)
  • بلقيس وانتصار الحكمة(مقالة - آفاق الشريعة)
  • بين النفس والعقل (3) تزكية النفس (خطبة) باللغة النيبالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: بين النفس والعقل (3) تزكية النفس - باللغة البنغالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • بين النفس والعقل (3) تزكية النفس(مقالة - آفاق الشريعة)
  • شروط الصلاة (1)(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • للسنة الخامسة على التوالي برنامج تعليمي نسائي يعزز الإيمان والتعلم في سراييفو
  • ندوة إسلامية للشباب تبرز القيم النبوية التربوية في مدينة زغرب
  • برنامج شبابي في توزلا يجمع بين الإيمان والمعرفة والتطوير الذاتي
  • ندوة نسائية وأخرى طلابية في القرم تناقشان التربية والقيم الإسلامية
  • مركز إسلامي وتعليمي جديد في مدينة فولجسكي الروسية
  • ختام دورة قرآنية ناجحة في توزلا بمشاركة واسعة من الطلاب المسلمين
  • يوم مفتوح للمسجد للتعرف على الإسلام غرب ماريلاند
  • ندوة مهنية تبحث دمج الأطفال ذوي الاحتياجات الخاصة في التعليم الإسلامي

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 10/5/1447هـ - الساعة: 9:27
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب