• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | مقالات شرعية   دراسات شرعية   نوازل وشبهات   منبر الجمعة   روافد   من ثمرات المواقع  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    المسلم دائم النفع طيب الأثر
    د. حسام العيسوي سنيد
  •  
    الحديث السادس: صلة الرحم لوجه الله ليست مبادلة ...
    الدكتور أبو الحسن علي بن محمد المطري
  •  
    البر بالكبار.. (خطبة)
    عبدالله بن إبراهيم الحضريتي
  •  
    أسباب البركة في الوقت
    رمضان صالح العجرمي
  •  
    من أهوال القيامة
    الشيخ عبدالله بن جار الله آل جار الله
  •  
    القرآن منهجية شاملة لهداية البشر
    منة شرع
  •  
    حقوق غير المسلمين
    د. أمير بن محمد المدري
  •  
    من قصص أنطونس السائح ومواعظه: (3) صاحب الكرم
    بكر البعداني
  •  
    تخريج حديث: إذا أراد أحدكم أن يتبول فليرتد لبوله
    الشيخ محمد طه شعبان
  •  
    مواقيت الصلوات: الفرع الثالث: وقت المغرب
    يوسف بن عبدالعزيز بن عبدالرحمن السيف
  •  
    سر عظيم لاستجابة الدعاء الخارق (زكريا، ومريم ...
    أ. عبدالله بن عبدالعزيز الخالدي
  •  
    حديث: حين نزلت آية المتلاعنين: أيما امرأة أدخلت ...
    الشيخ عبدالقادر شيبة الحمد
  •  
    الاعتبار بالأمم السابقة (خطبة)
    د. أيمن منصور أيوب علي بيفاري
  •  
    الأسماء الحسنى
    الشيخ عبدالعزيز السلمان
  •  
    الاستصناع
    عبدالرحمن بن يوسف اللحيدان
  •  
    رسالة إلى خطيب
    الشيخ وحيد عبدالسلام بالي
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / العبادات / الصلاة وما يتعلق بها
علامة باركود

تعظيم صلاة الفريضة وصلاة الليل (خطبة) (باللغة الهندية)

تعظيم صلاة الفريضة وصلاة الليل (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 23/11/2022 ميلادي - 29/4/1444 هجري

الزيارات: 6494

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

शीर्षक:

फर्ज़ एवं नफिल नमाज़ की महानता एवं महत्व

 

अनुवादक:

फैज़ुर रह़मान ह़िफज़र रह़मान तैमी

प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात

आदरणीय सज्जनो यह बात छुपी नहीं कि वादियां एवं नहरें जब जारी हों तो उनकी सुंदरता दिलों को भाती है क्योंकि उसके अनेक बड़े बड़े लाभ हैं,अ़रबों के यहां वादी एवं नहरों का जारी होना प्रसन्नता के अवसरों में से हुआ करता है जिस में वे फराखी एवं बेतक्कलुफी से काम लेते हैं,मदीना के अंदर वादी-ए-अक़ीक़ जब जारी होती तो लोग ख़ुशी के मारे घरों से निकल जाते और उसके सुंदर दृश्य से आनंदित होते थे,उनमें बापर्दा महिलाएं भी होतीं,इस प्राक्कथन के पश्चात आइये हम एक ह़दीस नी विचार करते हैं,ताकि हम सह़ाबा के उस भावना एवं शउूर को समझ सकें जो उनके अंदर इस ह़दीस को सुनने के पश्चात उतपन्न हुआ था,अत: आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक दिन फरमाया: यदि तुम में से किसी के दरवाजे पर कोई नहर जारी हो जिस में वह प्रत्येक दिन पांच बार स्नान करता हो तो तुम क्या कहते हो कि यह ऐसा करने से उसके शरीर पर कुछ भी मैल कुचैल बचा रहेगा सह़ाबा ने कहा:ऐसा करने से उसके शरीर पर कुछ भी मैल कुचेल नहीं रहेगा।(नि:संदेह कोई भी गंदगी नहीं बचेगी यदि वह मीठे और बहते हुए जल में स्नान करे।नि:संदेह वह पवित्र एवं साफ रहेगा)।(सह़ाबा ने कहा:उसके शरीर पर कोई गंदगी नहीं रहेगी)।सह़ाबा से आप ने फरमाया: पांचों नमाज़ों का यही उदाहरण है।अल्लाह तआ़ला इन के द्वारा पापों को मिटा देता है ।बोखारी एवं मुस्लिम।

 

अल्लाहु अकबर,नि: संदेह वह नमाज़ ही है जिसके विषय में क़्यामत के दिन सर्वप्रथम बंदा से प्रश्न किया जाएगा,नि:संदेह वह नमाज़ ही है जिसके विषय में नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि उसे समय पर स्थापित करना अल्लाह के निकट सर्वप्रिय अ़मल है,नि:संदेह वह इसलाम का स्तंभ है,नि:संदेह वह नमाज़ ही है जिसे स्थापित करने पर आप बैअ़त (......) लिया करते थे,नि:संदेह वह ऐसी प्रार्थना है जिस की महानता को देखते हुए इसको स्थापित करने के लिए पवित्रता की शर्त रख दी है,औस विषय में कोई मतभेद भी नहीं है,यही वह प्रार्थना है जो मोकल्लफ से साकित नहीं होती जब तक कि उसकी बुद्धि और चेतना काम करते हों,वह ऐसी प्रार्थना है जो दिल के साथ समस्त अंगों से भी की जाती है,वह ऐसी प्रार्थना है कि (कठिनाई के समय) जिसका सहारा लेने और उसके द्वारा सहायता मांगने का आदेश दिया गया है,वह सर्ब के काइममकाम है,वह ऐसा फरीज़ा है जिसे दिन व रात में पांच बार स्थापित किया जाता है,यही वह नमाज़ है जिस को नियमित रूप से स्थापित करने वाले अपने पापों के कारण यदि नरक में चले भी गए तो उनके ललाट को जलाना नरक पर ह़राम है,नि:संदेह वह बंदा और उसके रब के बीच संबंध एवं मोनाजात है,नि:संदेह वह रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की अपनी उम्मत के लिए अंतिम वसीयत है,नि:संदेह वह ऐसी प्रार्थना है जो उच्च सथान (आकाश में) और शुभ अवसर (नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के इसरा व मेराज के अवसर) से फर्ज़ किया गया,वह ऐसी प्रार्थना है जिसे अल्लाह ने अपने रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम पर डाइरेक्ट फर्ज़ किया,वह ऐसी वंदना है कि उसे स्थापित करने वाले के लिए फरिश्ते उस समय तक दुआ़ करते रहते हैं जब तक कि वह नमाज़ के स्थान पर बैठा रहता है और उसका वुज़ू नहीं टूटता और वह किसी को कष्ट नहीं देता,वह ऐसी प्रार्थना है जिसे युद्ध की स्थिति में भी समूह के साथ स्थापित करना फर्ज़ है,वह नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की आँखों की ठंडक और आपके प्राण की शांति है,इसी नमाज़ का आदेश अल्लाह ने मूसा अलैहिस्सलाम को वार्तलाप के समय दिया,इसी के द्वारा ई़सा अलैहिस्सलाम ने माँ की गोद में बात किया,ख़लील ने अपने लिए और अपनी संतान के लिए इसकी को स्थापित करने की दुआ़ मांगी और शोए़ैब की समुदाय को आश्चर्य हुआ कि इस नमाज़़ का प्रभाव उसके पूजयों एवं व्यापारियों पर भी पड़ने लगा है।

 

मेरे ईमानी भाइयो नमाज़ के विषय में अनेक सह़ीह़ नुसूस आए हैं जिनमें तरगीब व तरहीब आई है,इस विषय में विभिन्न ह़दीसें भी आई हैं,हम आपके समक्ष कुछ नुसूस प्रस्तुत कर रहे हैं जिन से हमारे ईमान में वृद्धि होगी और इन फर्ज़ों के द्वारा अल्लाह ने हमारे उूपर जो कृपा एवं दया किया है,उसका हमें इदराक होगा,आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: जिसने सुबह़ की नमाज़ स्थापित की,वह अल्लाह के जिम्मे में आगया,(दुआ़ है) अल्लाह तुम से अपने जिम्मे के विषय में कोई मांग न करे क्योंकि जिससे वह अपने जिम्मे में से किसी चीज़ को मांग ले,उसे पालेता है,फिर उसे ओंधे मुंह नरक की अग्नि में डाल देता है। (मुस्लिम) ई़शा और फजर के विषय में आपने फरमाया: जिस ने ई़शा की नमाज़ समूह के साथ स्थापित किया तो मानो उसने आधी रात नमाज़ स्थापित किया और जिसने सुबह़ की नमाज़ (भी) समूह के साथ स्थापित की तो मानो उसने सारी रात नमाज़ स्थापित की। (मुस्लम)फजर और अ़सर के विषय में आपने फरमाया: जो व्यक्ति दो ठंडे समय की नमाज़ नियमित रूप से स्थापित करे,वह स्वर्ग में जाएगा (बोख़ारी व मुस्लिम)।फजर और अ़सर के विषय में ही आप ने यह भी फरमाया: कुछ फरिश्ते रात को और कुछ दिन को तुम्हारे पास एक के बाद एक उपस्थित होते हैं और ये सारे फजर और अ़सर की नमाज़ में इकट्ठा हो जाते हैं,फिर जो फरिश्ते रात को तुम्हारे पास उपस्थित होते हैं,जब वह आकाश पर जाते हैं तो उनसे उनका पालनहार पूछता है:तुमने मेरे बंदों को किस स्थिति में छोड़ा है जबकि वह स्वयं अपने बंदों से अति अवगत हैं।वह उत्तर देते हैं: हमने उन्हें नमाज़ स्थापित करते छोड़ा है।और जब हम उन के पास पहुंचे थे,तब भी वह नमाज़ स्थापित कर रहे थे। (बोख़ारी एवं मस्लिम)।सह़ीह़ मुस्लिम की मरफूअ़न ह़दीस है: नि:संदेह तुम अपने पालनहार को (प्रलय के दिन) इसी प्रकार से देखोगे जिस प्रकार से इस चांद को देख रहे हो,इसे देखने में तुम्हें को कठिनाई नहीं होगी,अत: यदि तुम नियमित्ता के साथ नमाज़ स्थापित कर सकते हो तो सूर्यउदय से पूर्व (फजर की) और सूर्यास्त के पूर्व (अ़सर की) नमाज़ों को न छोड़ो,अर्थात नियमित्ता के साथ इन्हें स्थापित कर सकते हो तो अवश्य करो।फिर आप ने यह आयत पढ़ी:

﴿ وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ قَبْلَ طُلُوعِ الشَّمْسِ وَقَبْلَ الغُرُوبِ ﴾ [ق: 39]

 

अर्थात:

अ़सर की नमाज़ को छोड़ने की कठोर वइद आई है,सह़ीह़ैन (बोख़ारी व मुस्लिम) के ह़दीस है: जिस व्यक्ति से अ़सर की नमाज़ छूट गई,मानो उसका सब घर-बार और धन एवं संपत्ति लुट गए ।यह वइद उस व्यक्ति के लिए है जिसने कोताही करते हुए उसे समय निकलने के पश्चात स्थापित किया।

 

﴿ فِي بُيُوتٍ أَذِنَ اللَّهُ أَنْ تُرْفَعَ وَيُذْكَرَ فِيهَا اسْمُهُ يُسَبِّحُ لَهُ فِيهَا بِالْغُدُوِّ وَالْآصَالِ * رِجَالٌ لَا تُلْهِيهِمْ تِجَارَةٌ وَلَا بَيْعٌ عَنْ ذِكْرِ اللَّهِ وَإِقَامِ الصَّلَاةِ وَإِيتَاءِ الزَّكَاةِ يَخَافُونَ يَوْمًا تَتَقَلَّبُ فِيهِ الْقُلُوبُ وَالْأَبْصَارُ * لِيَجْزِيَهُمُ اللَّهُ أَحْسَنَ مَا عَمِلُوا وَيَزِيدَهُمْ مِنْ فَضْلِهِ وَاللَّهُ يَرْزُقُ مَنْ يَشَاءُ بِغَيْرِ حِسَابٍ ﴾ [النور: 36، 38].

 

अर्थात:

अल्लाह तआ़ला मुझे और आपको क़ुरान व सुन्नत से लाभ पहुंचाए,उनमें जो आयतें और नितियों की बातें हैं,उन्हें हमारे लिए लाभदायक बनाए,आप अल्लाह से क्षमा मांगें,नि:संदेह वह अति क्षमाशील है।

 

द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात:

इस्लामी भाइयो रोज़ाना की पांच समय की नमाज़ें मुसलमानों के लिए बड़े महान उपकारों को समोए हुई हैं,हमें अल्लाह के रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अनेक नफली नमाज़ों का भी आदेश दिया और उनके प्रति प्रोत्साहित किया,आपने यह उल्लेख किया कि सर्वश्रेष्ठ नमाज़ (नफल) रात की नमाज़ है,आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा गया:फर्ज़ नमाज़ के पश्चात कौनसी नमाज़ श्रेष्ठ है आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: फर्ज़ नमाज़ के पश्चात सर्वश्रेष्ठ नमाज़ आधी रात की नमाज़ है ।(मुस्लिम),सुनने अबी दाउूद और इब्ने माजा की रिवायत है कि मसरूक़ ने आयशा रज़ीअल्लाहु अंहा से पूछा कि अल्लाह के रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम किस समय वित्र पढ़ा करते थे उन्होंने कहा:आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम सारे ही समयों में वित्र पढ़े हैं।रात के आरंभ में,मध्य में और अंत में भी।किन्तु अंतिम जीवन में आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के वित्र सुबह़ के सयम होने लगे थे ।सह़ीह़ैन (बोख़ारी व मुस्लिम) में आयशा रज़ीअल्लाहु अंहा की रिवायत है: अल्लाह के रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रात के प्रत्येक भाग में वित्र की नमाज़ स्थापित की है,अंतत: आपकी वित्र की नमाज़ सुबह़ तक पहुंच गई । जिसे डर हो कि वह रात के अंतिम भाग में नहीं उठ सकेगा,वह रात के आरंभ में वित्र पढ़ले।और जिसे आशा हो कि वह रात के अंत में उठ जाएगा,वह रात के अंत में वित्र पढ़े क्योंकि रात के अंत भाग की नमाज़ का मोशाहदा किया जाता है और यह अफजल है ।(मुस्लिम) जो व्यक्ति सोने से पूर्व वित्र पढ़ले और रात के अंत में उसकी नींद टूट जाए तो बिना वित्र के ही नमाज़ पढ़े,मुसलमान के जीवन में नफल नमाज़ का क्या महत्व है,इसको अल्लाह तआ़ला के इस कथन से समझा जा सकता है:

﴿ كَانُوا قَلِيلًا مِنَ اللَّيْلِ مَا يَهْجَعُونَ ﴾

 

अर्थात:

यह सूरह الذاریات की आयत है जो कि मक्की सूरह है,इसका महत्व इससे भी स्पष्ट होता है कि यही वह वंदना है जिसकी नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हिजरत से समय रगबत दिलाई,अत: अ़ब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ीअल्लाहु अंहु कहते हैं:रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम जब मदीना आए तो लोग आपकी ओर दौड़ पड़े,और कहने लगे:अल्लाह के रसूल आगए,अल्लाह के रसूल आगए,अल्लाह के रसूल आगए,अत: मैं भी लोगों के साथ आया ताकि आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखूं (उस समय वह यहूदी थे),फिर जब मैं ने आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का शुभ चेहरा अच्छे से देखा तो पहचान गया कि यह किसी झूटे का चेहरा नहीं हो सकता,और सबसे प्रथम बात जो आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कही वह यह थी: लोगो सलाम फैलाओ,भोजन खिलाओ और रात में जब लोग सो रहे हों तो नमाज़ पढ़ो,तुम लोग शांति के साथ स्वर्ग में प्रवेश होगे ।इसे तिरमिज़ी और इब्ने माजा ने वर्णन किया है और अल्बानी ने सह़ीह़ कहा है।अल्लाह तआ़ला ने बुद्धि वालों की प्रशंसा में फरमाया:

﴿ أَمَّنْ هُوَ قَانِتٌ آنَاء اللَّيْلِ سَاجِداً وَقَائِماً يَحْذَرُ الْآخِرَةَ وَيَرْجُو رَحْمَةَ رَبِّهِ قُلْ هَلْ يَسْتَوِي الَّذِينَ يَعْلَمُونَ وَالَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ إِنَّمَا يَتَذَكَّرُ أُوْلُوا الْأَلْبَابِ ﴾ [الزمر: 9].

 

अर्थात:

आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: जिस व्यक्ति ने दस आयतों से स्थापित किया वह गाफिलों में नहीं गिना जाता।और जो सौ आयतों से स्थापित करे वह «المقنطرين» (अपार पुण्य इकट्ठा करने वाला) में लिखा जाता है ।इसे अबूदाउूद ने वर्णन किया है और अल्बानी ने सह़ीह़ कहा है।यदि मुसलमान सूरह النبا और सूहर النازعات पढ़े तो आयतों की संख्या सूरह الفاتحہ समेत सौ हो जाएगी।

﴿ تَتَجَافَى جُنُوبُهُمْ عَنِ الْمَضَاجِعِ يَدْعُونَ رَبَّهُمْ خَوْفًا وَطَمَعًا وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنْفِقُونَ * فَلَا تَعْلَمُ نَفْسٌ مَا أُخْفِيَ لَهُمْ مِنْ قُرَّةِ أَعْيُنٍ جَزَاءً بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ ﴾ [السجدة: 16، 17]

 

अर्थात:

तथा अल्लाह तआ़ला ने फरमाया:

﴿ إِنَّ نَاشِئَةَ اللَّيْلِ هِيَ أَشَدُّ وَطْئًا وَأَقْوَمُ قِيلًا ﴾ [المزمل: 6]

 

अर्थात:

रात की नमाज़ का एक लाभ यह है कि दिल में उसका गहरा प्रभाव होता है,ज़बान से अच्छी बात निकलती है,इब्ने कसीर फरमाते हैं:

﴿ إِنَّ نَاشِئَةَ اللَّيْلِ هِيَ أَشَدُّ وَطْئًا وَأَقْوَمُ قِيلًا ﴾

 

अर्थात:

इस आयत का मतलब यह है कि: दिन की तुलना में रात की नमाज़ में क़ुरान का ससवर पाठ करने में और उसे समझने में दिल दिमाग़ अधिक उपस्थित रहता है,क्योंकि दिन के समय लोग इधर उधर घूमते फिरते होते हैं,शोर व गुल होता है और जीविका के कमाने का समय होताह है ।समाप्त।अल्लाह तआ़ला ने फरमाया:

﴿ وَتَوَكَّلْ عَلَى الْعَزِيزِ الرَّحِيمِ * الَّذِي يَرَاكَ حِينَ تَقُومُ * وَتَقَلُّبَكَ فِي السَّاجِدِينَ * إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ ﴾ [الشعراء: 217 – 220]

अर्थात:

आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ह़दीस है: हमारा बुजुर्ग व सर्वशक्ति पालनहार प्रत्येक रात सांसारिक आकाश पर अवतरित होता है जब रात की अंतिम तिहाई शेष रह जाती है।और आवाज़ देता है:कोई है जो मुझ से दुआ़ करे मैं उसे स्वीकार करूं कोई है जो मुझसे मांगे मैं उसे प्रदान करूं कोई है जो मुझसे क्षमा मांगे तो मैं उसे क्षमा प्रदान करूं (बोख़ारी व मुस्लिम)।

﴿ وَأَقِمِ الصَّلَاةَ طَرَفَيِ النَّهَارِ وَزُلَفًا مِنَ اللَّيْلِ إِنَّ الْحَسَنَاتِ يُذْهِبْنَ السَّيِّئَاتِ ذَلِكَ ذِكْرَى لِلذَّاكِرِينَ ﴾ [هود: 114].







 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • من أحكام الجنازة (خطبة) (باللغة الهندية)
  • أتأذن لي أن أعطيه الأشياخ؟! (خطبة) (باللغة الهندية)
  • إدمان الذنوب (خطبة) (باللغة الهندية)
  • من مشكاة النبوة (6) "أين ابن عمك" (خطبة) (باللغة الهندية)
  • من مشكاة النبوة (7) الطفلة والصلاة!! (خطبة) (باللغة الهندية)
  • من مشكاة النبوة (8) حفظ الجميل (خطبة) (باللغة الهندية)
  • الموت (خطبة) (باللغة الهندية)
  • الإحسان إلى الناس ونفعهم (خطبة) (باللغة الهندية)

مختارات من الشبكة

  • تعظيم الأمر والنهي الشرعيين في نفوس المتربين(مقالة - مجتمع وإصلاح)
  • تعظيم السنة تعظيم للقرآن (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • فضل عشر ذي الحجة وأن تعظيمها من تعظيم شعائر الله(محاضرة - ملفات خاصة)
  • من تعظيم ربنا جل وعلا تعظيم كتبه ورسله(مقالة - آفاق الشريعة)
  • شرح كتاب الدروس المهمة سنن الصلاة وأن تعظيمها من تعظيم شعائر الله ومن أسباب زيادة الإيمان(مادة مرئية - مكتبة الألوكة)
  • من مائدة العقيدة: وجوب طاعة الرسول صلى الله عليه وسلم والاقتداء به(مقالة - آفاق الشريعة)
  • استحباب أن يقدم المسلم صدقة بين يدي صلاته ودعائه(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الحديث السادس: صلة الرحم لوجه الله ليست مبادلة ومعاوضة(مقالة - آفاق الشريعة)
  • مائدة الحديث: فضل الصلوات الخمس وتكفيرها للسيئات(مقالة - آفاق الشريعة)
  • شدة جمالي ونظرات الرجال(استشارة - الاستشارات)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • أعمال شاملة لإعادة ترميم مسجد الدفتردار ونافورته التاريخية بجزيرة كوس اليونانية
  • مدينة نابريجناي تشلني تحتفل بافتتاح مسجد "إزجي آي" بعد تسع سنوات من البناء
  • انتهاء فعاليات المسابقة الوطنية للقرآن الكريم في دورتها الـ17 بالبوسنة
  • مركز ديني وتعليمي جديد بقرية كوياشلي بمدينة قازان
  • اختتام فعاليات المسابقة الثامنة عشرة للمعارف الإسلامية بمدينة شومن البلغارية
  • غوريكا تستعد لإنشاء أول مسجد ومدرسة إسلامية
  • برنامج للتطوير المهني لمعلمي المدارس الإسلامية في البوسنة والهرسك
  • مسجد يستضيف فعالية صحية مجتمعية في مدينة غلوستر

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 22/3/1447هـ - الساعة: 1:33
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب