• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | مقالات شرعية   دراسات شرعية   نوازل وشبهات   منبر الجمعة   روافد   من ثمرات المواقع  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    مكانة العلماء في ضوء الكتاب والسنة وهدي السلف ...
    الشيخ عبدالرحمن بن سعد الشثري
  •  
    نماذج من سير الأتقياء والعلماء والصالحين (11) ...
    د. صغير بن محمد الصغير
  •  
    التعامل النبوي مع الفقراء والمساكين (خطبة)
    د. عبد الرقيب الراشدي
  •  
    الآيات الإنسانية في القرآن الكريم
    محمد عبدالعاطي محمد عطية
  •  
    آثارك بعد موتك (خطبة)
    السيد مراد سلامة
  •  
    الأدلة العلمية على وجود الخالق جل وعلا
    الشيخ عبدالله محمد الطوالة
  •  
    مدارس أصول الفقه: تأصيل المناهج والمدارس
    د. عبدالسلام حمود غالب
  •  
    تفسير: (وما آتيناهم من كتب يدرسونها وما أرسلنا ...
    تفسير القرآن الكريم
  •  
    تخريج حديث: اتقوا الملاعن الثلاثة
    الشيخ محمد طه شعبان
  •  
    الحديث التاسع: الراحمون يرحمهم الرحمن
    الدكتور أبو الحسن علي بن محمد المطري
  •  
    وقفات تربوية مع سورة قريش (خطبة)
    رمضان صالح العجرمي
  •  
    خطبة: علموا أولادكم كيف نتعامل مع المعلم
    عدنان بن سلمان الدريويش
  •  
    سلسلة شرح الأربعين النووية: الحديث (37) «إن الله ...
    عبدالعزيز محمد مبارك أوتكوميت
  •  
    قصة عجوز بني إسرائيل والمسائل المستنبطة منها
    عبدالستار المرسومي
  •  
    خدعوك فقالوا: قرآنيون! (خطبة)
    محمد موسى واصف حسين
  •  
    عدالة أبي بكرة وصحة حديث ولاية المرأة: دراسة ...
    د. هيثم بن عبدالمنعم بن الغريب صقر
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / السيرة والتاريخ / السيرة
علامة باركود

من مشكاة النبوة (3) ذو العقيصتين (خطبة) (باللغة الهندية)

من مشكاة النبوة (3) ذو العقيصتين (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 24/8/2022 ميلادي - 27/1/1444 هجري

الزيارات: 6034

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

शीर्षक:

दो चोटियों वाले(ज़माम बिन सालबा)

प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चात


मैं आप को और स्‍वयं को र्स्‍वश्रेष्ठ एवं सबसे लाभदायक और अत्‍यन्‍तव्‍यापक वसीयत करता हूँ,जिस की वसीयत अल्‍लाह ने हमें और पूर्व की समस्‍त उम्‍मतों को की:

﴿ وَلَقَدْ وَصَّيْنَا الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ مِن قَبْلِكُمْ وَإِيَّاكُمْ أَنِ اتَّقُواْ اللّهَ ﴾ [النساء: 131]

अर्थात:और हम ने तुम से पूर्व अहले किताब को तथा तुम को आदेश दिया है कि अल्‍लाह से डरते रहो


अल्‍लाह के कृपा के बाद तक्‍़वा(धर्मनिष्‍ठा)ही वह अ़मल है जिस के द्वारा स्‍वर्ग की नेमत और उसके उच्‍च स्‍थान प्राप्‍त किए जा सकते हैं:

﴿ تِلْكَ الْجَنَّةُ الَّتِي نُورِثُ مِنْ عِبَادِنَا مَن كَانَ تَقِيّاً ﴾ [مريم: 63]

अर्थात:य‍ही वह स्‍वर्ग है जिस का हम उत्‍तराधिकारी बना देंगे अपने भक्‍तों में से उसे जो आज्ञाकारी हो


ऐ ईमानी भाइयो आप के यमक्ष पैगंबर का यह दृश्‍य प्रस्‍तुत करता हूँ..


अनस बिन मालिक रज़ीअल्‍लाहु अंहु से वर्णित है,वह कहते हैं कि:एक बार हम मस्जिद में पैगंबर सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम से साथ बैठे हुए थे,ऐतने में एक व्‍यक्ति उूंट पर सवार हो कर आया और उसको मस्जिद में बैठा कर बांध दिया।फिर पूछने लगा(भाइयो)तुम लोगों में मोह़म्‍मद(सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम)कौन हैं।आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम उस समय लोगों के बीच तकिया लगाए बैठे थे,हम ने कहा:मोह़म्‍मद(सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम)यह सफेद रंग वाले बुजुर्ग हैं जो तकिया लगाए हुए हैं।तब वह आप से संबोतिद किया कि ऐ अ़ब्‍दुल मुत्‍तलिब के लड़के आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने फरमाया:कहो मैं आप की बात सुन रहा हूँ,व‍ह बोला मैं आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम से कुछ दीनी बातें पूछना चाहता हूँ और थोड़ी कठोरता से भी पूछुंगा तो आप अपने दिल में बुरा न मानिएगा।आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने फरमाया:नहीं जो तुम्‍हारा दिल चाहे पूछो।तब उस ने कहा कि मैं आप को आप के रब और अगले लोगों के रब तआ़ला की कसम दे कर पूछता हूँ:क्‍या आप को अल्‍लाह ने दुनिया के सब लोगों की ओर पैगंबर बना कर भेजा है आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने फरमाया:हां ऐ मेरे अल्‍लाह फिर उस ने कहा:मैं आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम को अल्‍लाह की क़सम देता हूँ क्‍या अल्‍लाह ने आप सलल्‍लाहु अलैहि सवल्‍लम रात दिन में पांच नमाज़ें पढ़ने का आदेश दिया है आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने फरमाया:हां ऐ मेरे अल्‍लाह फिर कहने लगा:मैं आप को अल्‍लाह की क़सम दे कर पूछता हूँ कि क्‍या अल्‍लाह ने आप को यह आदेश दिया है कि पूरे वर्ष में हम इस महीना रमज़ान का उपवास रखें आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने फरमाया:हां ऐ मेरे अल्‍लाह फिर कहने लगा मैं आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम को अल्‍लाह की क़सम दे कर पूछता हूँ कि क्‍या अल्‍लाह ने आप को यह आदेश दिया है कि आप हम में से जो धनी लोग हैं उन से ज़कात ले कर हमारे दरिद्रोंमें बांट दिया करें।पैगंबर सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने फरमाया:हां ऐ मेरे अल्‍लाह तब वह व्‍यक्ति कहने लगा:जो आदेश आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम अल्‍लाह के पास से लाए हैं,मैं उन पर ईमान लाया और मैं अपने समुदाय के लोगों को जो यहां नहीं आए हैं भेजा हुआ(प्रतिनिधि)हूँ।मेरा नाम ज़मान बिन सालबा है,मैं नबी साद बिन बकर के खांदान से हूँ।


मुस्‍दन अह़मद की एक रिवायत में है कि:नबी ने जब अपनी बात समाप्‍त की तो उस व्‍यक्ति ने कहा:मैं गवाही देता हूँ कि अल्‍लाह के सिवा कोई सत्‍य पूज्‍य नहीं,और मोह़म्‍मद अल्‍लाह के रसूल हैं,मैं सारे फर्ज़ों को पूरा करूंगा और आप ने जिन चीज़ों से रोका है,उनसे बचता रहुंगा,इससे न अधिक करूंगा और न इन में कोई कमी करूंगा,वर्णनकर्ता कहते हैं:फिर वह व्‍यक्ति अपनी उूंटनी की ओर लौट गया,जब वह लौटा तो अल्‍लाह के रसूल ने फरमाया:दो चोटियों वाला यह व्‍यक्ति(अपनी बात) यदि सत्‍य कर दिखाए तो वह स्‍वर्ग में प्रवेश करेगा,फिश्र उसने उूंटनी की रस्‍सी खोली और अपने समुदाय के पास चला गया,उसके समुदाय के लोग उसके पास इकट्ठा हुए,उसने सबसे पहले जो बात कही वह यह थी कि:लात एवं उ़ज्‍़जा नष्ट हों,लोगों ने कहा:चुप हो जाओ ऐ ज़माम तुम कुष्‍ठ,कोढ़ और लागलपन से बचो,उसने कहा:तुम नष्ट हो जाओ,नि:संदेह वह दोनों न हानि पहुंचा सकते हैं और न लाभ,अल्‍लाह तआ़ला ने एक रसूल भेजा है,उस पर एक पुस्‍तक उतारी है जिस के द्वारा व‍ह तुम्‍हें इस शिर्क एवं मूर्ति पूजा से निकालना चाहता है जिस में तुम डूबे हो,मैं गवाही देता हूँ कि अल्‍लाह के सिवा कोई सत्‍य पूज्‍य नहीं,वह अकेला है,उसका कोई साझी नहीं और मोह़म्‍मद सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम अल्‍लाह के बंदे और रसूल हैं,मैं उनके पास से उन के आदेश एवं निषेध ले कर आया हूँ,वर्णनकर्ता कहते हैं:उस दिन शाम होते होते उस बस्‍ती के सारे पुरूष एवं स्‍त्री मुसलमान हो गए,वर्णनकर्ता का बयान है:इब्‍ने अ़ब्‍बास फरमाते हैं:मैं ने किसी समुदाय के ऐसे प्रतिनिधि के विषय में नहीं सुना जो ज़माम बिन सालबा से अधिक श्रेष्‍ठ हुआ हो।


الله أكبر...

जब ईमान दिल में बैठ जाए तो उसका स्‍थान कितना महान हो ता है


मित्रो आ‍इये हम रुक कर इस कहानी पे थोड़ा विचार करते हैं:

• इस कथा में हम देखते हैं कि नबी और आप के सह़ाबा के जीवन में समानता आई जाती थी,वह इस प्रकार से कि उनके पास जो अजनबी व्‍यक्ति जाता वह सह़ाबा के बीच नबी को नहीं पहचानता तुम में से मोह़म्‍मद कौन हैं दूसरी रिवायत में है: तुम में से अ़ब्‍दुल मुत्‍तलिब का पुत्र कौन है न आप प्रसिद्धि का वस्‍त्र पहनते और न आप की स्थिति अन्‍य लोगों से मुमताज होती,यही कारण है कि आप ने सह़ाबा को आप के आस पास खड़े रहने से मना किया,जैसे अजमी(अरब के अतिरिक्‍त)लोग अपने स्‍वामी के आस पास खड़े हुआ करते थे,ताकि आप अहंकार से दूर रहें,सह़ाबा के साथ इसी निकटता,समानता के द्वारा आप ने उनके विचार एवं व्‍यवहार को सही किया और आप का प्रेम उनके दिल घर कर गया।


• दूसरी महत्‍वपूर्ण बात नबी का यह कथन है कि: जो तुम्‍हारा दिल चाहे पूछो ।सत्‍य का जिज्ञासा रखने वालों और हिदायत के चाहने वालों के लिए आप का यह कथन महत्‍वपूर्ण है,अर्थात उनके लिए प्रश्‍न पूछना मना नहीं है,क्‍योंकि जिस धर्म के साथ अल्‍लाह के रसूल भेजे गए उसमें कोई बात ऐसी नहीं जिस को बयान करने अथवा जिस के प्रति प्रश्‍न करने से शरमाया जाए।


• एक महत्‍वपूर्ण पाठ यह भी मिलता है कि नबी उत्‍तम व्‍यवहार के थे,ज़माम बिन सालबा के वार्तालापमें तीव्रताथी,उन्‍हों ने कहा: मैं आप(सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम) से कुछ धर्मिक बातें करना चाहता हूँ और थोड़ी कठोरता से भी पूछुंगा तो आप अपने दिल में बुरा नहीं मानएगा ,ज्ञात हुआ कि या प्रश्‍न उन्‍हों ने मक्‍का विज्‍य के पश्‍चात किया था जब कि लोग इस्‍लाम में समूह के समूह प्रवेश होने लगे थे,उसके बावजूद नबी ने उनके बातचीतकेतरीके और स्‍वभाव(की तीव्रता को)बर्दाश्‍त किया।


अल्‍लाह तआ़ला मुझे और आप सब को क़ुरान व ह़दीस से लाभ पहुंचाए,उन में पाए जाने वाले हिदायत एवं नीति की बातों को हमारे लिए लाभदायक बनाए,आप अल्‍लाह से क्षमा मांगें,नि:संदेह वह अति क्षमाशील है।


द्वतीय उपदेश:

الحمد لله وكفى، وسلام على عباده الذين اصطفى.


प्रशंसाओं के पश्‍चात:

• उपरोक्‍त कहानी से एक लाभ यह भी प्राप्‍त होता है कि:ज़मान बिन सालबा ने इस्‍लाम की सत्‍य शिक्षा एवं आस्‍था की पुष्टि को बहुत महत्‍व दिया,इसी लिए उन्‍हों ने यात्रा किया ताकि अल्‍लाह के रसूल के विषय में जो बातें उन्‍हें पहुंची थी उनकी पुष्टि कर सकें और अपने पूर्व धर्म के प्रति ठोस निर्णय ले सकें,इस से स्‍पष्‍ट होता है कि रसूल की सत्‍यता स्‍पष्‍ट होने के पश्‍चात वह उस के धर्म का दायित्‍व अपने कांधे पर उठाने के लिए कितनी गंभीरता से तैयार थे,और यह सत्‍यता अल्‍लाह के रसूल के सेवा में उपस्थित होने के पश्‍चात स्‍पष्‍ट होगई।


• एक विचार करने वाली बात यह भी है कि:यह ईमान जब दिल में बैठ जाए तो बड़े आश्‍चर्यजनक परिणाम सामने आते हैं,ज़माम बिन सालबा इस स्थिति में अपने समुदाय के पास लौटते हैं कि उनके दिल से लात व उ़ज्‍़जा निकल चुके होते हैं,बल्कि वह उन्‍हें बुरा भला कह रहे होते हैं जिस के कारण उनके मुशिर्क समुदाय को डर होता है कि कहीं उन्‍हें कुष्ठ रोग और कोढ़ का रोग न हो जाए,किन्‍तु ईमान और एकेश्‍वरवाद का दिया जब आलोकित होता हे तो प्रत्‍येक प्रकार की अंधविश्‍वासों एवं अनुकरणको पराजित कर देती है: तुम नष्‍ट हो जाओ,नि:संदेह उन दोनों(असत्‍य प्रमेश्‍वर को)न हानि पहुंचाने की शक्ति है और न लाभ ।


• एक लाभ यह भी है कि:हमें धर्म के प्रचार प्रसार का महत्‍व जानना चाहिए,ज़माम बिन सालबा को देखें वह अपने ईमान का सरे आम घाषणा कर रहे हैं और कहते हैं: मैं अपने समुदाय के लागों का जो यहां नहीं आए हैं भेजा हुआ(प्रतिनिधि)हूँ इब्‍ने अ़ब्‍बास फरमाते हैं: मैं ने किसी समुदाय के ऐसे प्रतिनिधि के विषय में नहीं सुना जो ज़माम बिन सालबा से अधिक श्रेष्‍ठ हो ।


• हे अल्‍लाह तू ज़मान बिन सालबा,समस्‍त सह़ाबा,ताबई़न से प्रसन्‍न होजा और हे ارحم الراحمین!अपनी कृपा से हमें भी उनके साथ अपनी प्रसन्‍नता प्रदान कर।

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • من مشكاة النبوة (3) ذو العقيصتين (خطبة)
  • الاعتراف يهدم الاقتراف (باللغة الهندية)
  • قصة نبوية (2) معجزات وفوائد: تكثير الطعام (باللغة الهندية)
  • من مشكاة النبوة (6) "أين ابن عمك" (خطبة) (باللغة الهندية)
  • خطبة: من مشكاة النبوة (1) - باللغة البنغالية
  • من مشكاة النبوة (3) ذو العقيصتين (خطبة) - باللغة النيبالية

مختارات من الشبكة

  • تعظيم قدر الصلاة في مشكاة النبوة - بلغة الإشارة (PDF)(كتاب - مكتبة الألوكة)
  • من مشكاة النبوة (5) "يا أم خالد هذا سنا" (خطبة) - باللغة النيبالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • المراهقون بين هدي النبوة وتحديات العصر (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • من دروس خطبة الوداع: أخوة الإسلام بين توجيه النبوة وتفريط الأمة (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • إطلالة على أنوار من النبوة(مقالة - موقع الشيخ الدكتور عبدالله بن ضيف الله الرحيلي)
  • خطبة: {وأنيبوا إلى ربكم} (باللغة البنغالية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • جمع فوائد العلم والعمل من رؤيا ظلة السمن والعسل ((أصبت بعضا وأخطأت بعضا))(مقالة - آفاق الشريعة)
  • مكانة العلماء في ضوء الكتاب والسنة وهدي السلف (خطبة)(مقالة - موقع الشيخ عبدالرحمن بن سعد الشثري)
  • التعامل النبوي مع الفقراء والمساكين (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • نعمة المطر (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • أكثر من 150 مشاركا يتعلمون مبادئ الإسلام في دورة مكثفة بمدينة قازان
  • انطلاق فعاليات شهر التاريخ الإسلامي 2025 في كندا بمشاركة واسعة
  • أطباء مسلمون يقودون تدريبا جماعيا على الإنعاش القلبي الرئوي في سيدني
  • منح دراسية للطلاب المسلمين في بلغاريا تشمل البكالوريوس والماجستير والدكتوراه
  • مبادرة "زوروا مسجدي 2025" تجمع أكثر من 150 مسجدا بمختلف أنحاء بريطانيا
  • متطوعو كواد سيتيز المسلمون يدعمون آلاف المحتاجين
  • مسلمون يخططون لتشييد مسجد حديث الطراز شمال سان أنطونيو
  • شبكة الألوكة تعزي المملكة العربية السعودية حكومة وشعبا في وفاة سماحة مفتي عام المملكة

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 13/4/1447هـ - الساعة: 13:30
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب