• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | الثقافة الإعلامية   التاريخ والتراجم   فكر   إدارة واقتصاد   طب وعلوم ومعلوماتية   عالم الكتب   ثقافة عامة وأرشيف   تقارير وحوارات   روافد   من ثمرات المواقع  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    من الانتماء القبلي إلى الانتماء المؤسسي: تحولات ...
    د. محمد موسى الأمين
  •  
    الذكاء الاصطناعي... اختراع القرن أم طاعون
    سيد السقا
  •  
    الدماغ: أعظم أسرار الإنسان
    بدر شاشا
  •  
    دعاء المسلم من صحيح الإمام البخاري لماهر ياسين ...
    محمود ثروت أبو الفضل
  •  
    صناعة المالية الإسلامية تعيد الحياة إلى الفقه ...
    عبدالوهاب سلطان الديروي
  •  
    التشكيك في صحة نسبة كتاب العين للخليل بن أحمد ...
    د. عبدالله بن يوسف الأحمد
  •  
    مقدار استعمال الحبة السوداء (الشونيز) وزيتها حسب ...
    الشيخ عبدالرحمن بن سعد الشثري
  •  
    التحذير من فصل الدين عن أمور الدنيا
    د. محمد بن علي بن جميل المطري
  •  
    القسط الهندي في السنة النبوية
    د. عبدالعزيز بن سعد الدغيثر
  •  
    الصحة النفسية في المغرب... معاناة صامتة وحلول ...
    بدر شاشا
  •  
    صحابة منسيون (5) الصحابي الجليل: خفاف بن إيماء بن ...
    د. أحمد سيد محمد عمار
  •  
    الحرف والمهن في المغرب: تراث حي وتنوع لا ينتهي
    بدر شاشا
  •  
    حواش وفوائد على زاد المستقنع لعبدالرحمن بن علي ...
    محمود ثروت أبو الفضل
  •  
    العلاقات الدولية ومناهجنا التعليمية
    أ. د. فؤاد محمد موسى
  •  
    قراءات اقتصادية (65) رأس المال في القرن الحادي ...
    د. زيد بن محمد الرماني
  •  
    التعامل مع شهوة المريض للطعام والشراب
    د. عبدالعزيز بن سعد الدغيثر
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / خطب بلغات أجنبية
علامة باركود

صلاة بأعظم إمامين (باللغة الهندية)

صلاة بأعظم إمامين (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 21/12/2022 ميلادي - 28/5/1444 هجري

الزيارات: 3323

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

शीर्षक:

दो र्स्‍वश्रेष्‍ठ इमामों में से एक र्स्‍वश्रेष्‍ठ इमाम की इमामत

 

अनुवादक:

फैजुर रह़मान हि़फजुर रह़मान तैमी

 

प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चात:

मैं आप को और स्‍वयं को अल्‍लाह का तक्‍़वा (धर्मनिष्‍ठ),आत्‍मा का निरीक्षण एवं ऐसे आ़माल से लिए प्रयासरत रहने की वसीयत करता हूँ जिन से हृदय में अल्‍लाह बआ़ला का प्रेम,उसके सवाब का आशा और उसका डर पैदा होता है,यही वे चीज़ें हैं जो पापों से रोकती एवं आज्ञाकारिता को आसान करती हैं,अल्‍लाह तआ़ला ने उन मोमिनों की प्रशंसा की है जो अपनी नमाज़ों को नियमित रूप से स्‍थापित करते हैं,अपने गुप्‍तांगों की रक्षा करते हैं और उनके धन में मांगने वालों और न पाने वालों का भी भाग होता है,वह अपने पालनहार से डरते हैं,और अपने वचनों पर जमें रहते हैं।अल्‍लाह ने यह सूचना दी है कि वह नमाज़ों को नियमित रूप से स्‍थापित रकते हैं,दूसरे स्‍थान पर अल्‍लाह ने उन बुद्धिमानों की प्रशंसा की है जो अपने पालनहार से डरते और हिसाब व किताब के बुरे परिणाम से डरते हैं।


ईमानी भाइयो आज हम नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम के एक संक्षिप्‍त घटने पर विचार करेंगे,इससे हमारे दिलों को उच्‍चता,श्रेष्‍टता एवं परामर्शएवं न्‍यायशास्त्र एवं अंतर्दृष्टिप्राप्‍त होगी,यह घटना दो र्स्‍वश्रेष्‍ठ इमामों में से एक र्स्‍वश्रेष्‍ठ इमाम के संबंध में है,यह घटना अ़सर के समय मदीना में घटा।


बोखारी एवं मुस्लिम ने सहल बिन साद सादी रज़ीअल्‍लाहु अंहु से रिवायत किया है कि रसूलुल्‍लाह सल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम अ़म्र बिन औ़फ कबीले (घराना) में सुलह (मेल-जूल) कराने के लिए गये।जब नमाज़ का समय हुआ तो मोअज्जि़न ने ह़ज़रत अ‍बू बकर के पास आ कर कहा:यदि आप नमाज़ पढ़ाएं तो मैं इक़ामत कह दूँ


उन्‍हों ने फरमाया:हां।उसके बाद ह़ज़रत अबू बकर रज़ीअल्‍लाहु अंहु नमाज़ पढ़ाने लगे।एतने में अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम पधारे जबकि लोग नमाज़ में व्‍यस्‍त थे।आप सफों (पंक्ति) में गुजर कर प्रथम सफ में पहुंचे।उस पर लोग तालियां बजाने लगे,किन्‍तु अबू बकर अपनी नमाज़ में इधर-उधर नहीं देखा करते थे।जब लोगों ने नियमित रूप से तालियां बजाईं तो ह़ज़रत अबू बकर रज़ीअल्‍लाहु अंहु ने ध्‍यान दिया तो आप की नजर रसूलुल्‍लाह पर पड़ी (वह पीछे हटने लगे) तो अल्‍लाह के रसूल ने इशारा किया:तुम अपने स्‍थान पर बने रहो।उस पर ह़ज़रत अबू बकर ने अपने दोनों हाथ उठा कर अल्‍लाह का आभार व्‍यक्‍त किया कि अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने उन्‍हें इमामत प्रदान किया है,और वह पीछे हट कर लोगों की सफ में शामिल हो गए और अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने आगे बढ़ कर नमाज़ पढ़ाई।नमाज़ की समाप्ति के पश्‍चात आप ने फरमाया: ऐ अबू बकर जब मैं ने तुम्‍हें आदेश दिया था तो तुम खड़े क्‍यों न रहे ।ह़ज़रत अबू बकर रज़ीअल्‍लाहु अंहु ने कहा:अबू क़ह़ाफा के बेटे की क्‍या साहसकि वह रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम के आगे नमाज़ पढ़ाए।फिर रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने लोगों की संबोधित करते हुए फरमाया: क्‍या कारण है कि मैं ने तुम्‍हें अधिक तालियां बजाते हुए देखा (देखो )जब किसी को नमाज़ की बीच में कोई बात हो जाए तो   سبحان الله कहना चाहिए क्‍योंकि जब वह سبحان الله कहेगा तो उसकी ओर ध्‍यान दी जाएगी और ताली बजाना तो केवल महिलाओं के लिए है ।


अल्‍लाह तआ़ला हमारे नबी मोह़म्‍मद पर दरूद व सलाम भेजे,हमें आप के ह़ौज़ (कुंड) पर पहुंचाए और हमें आप की शिफाअत (अनुशंसा) प्रदान करे।


ऐ मेरे मित्रो इस घटना से अनेक लाभ प्राप्‍त होते हैं,उन में से कुछ लाभों को निम्‍न में बयान किया जा रहा है:

• लोगों के बीच सुलह कराने का महत्‍व एवं इमाम के चलना का वैध आदि।


• इमाम यदि नमाज़ में इमामत के स्‍थान से हट जाए तो दूसरा व्‍यक्ति उसके स्‍थान पर इमामत करा सकता है इस शर्त के साथ कि फितना का आशंका न हो और इमाम मना न करे।


• उपकारोंकी नवीनीकरणके समय अल्‍लाह की प्रशंसा करनी चाहिए, नमाज़ के शब्‍दों में से हैं,और इससे नमाज़ प्र कोई नकारात्‍मक प्रभाव नहीं पड़ता।


• एक लाभ यह भी प्राप्‍त होता है कि:थोड़ी गतिविधि से नमाज़ व्‍यर्थनहीं होती।


• जब बात समझ में आजाए तो इशारे पर बस करना चाहिए।


• बड़ों के साथ सम्‍मानका व्‍यवहार करना चाहिए।


• आवश्‍यकता के समय नमाज़ के बीच किसी और चीज़ पर ध्‍यान दिया जा सकता है।


• आवश्‍यकता के समय नमाज़ की स्थिति में एक दो कदम चला जा सकता है।


• अनुयायी को जब अगुआ व लीडर किसी बात का आदेश दे और उससे उसका सम्‍मान समझ में आता हो तो वह काम करना अनीवार्य नहीं,बल्कि उसके लिए उस काम का छोड़ देना सही है,और यह उसके आदेश का उल्‍लंघन नहीं है,बल्कि अदब एवं विनम्रताका तकाज़ा है।


• मसनुन तरीका यह है कि नमाज़ में यदि इमाम से कोई गलती हो जाए तो नमाजि़यों को उन को سبحان الله कह कर सुचित करेंगे,जबकि महिलाएं ताली बजा कर इमाम को सुचित करेंगी।


इमाम नौवी रहि़महुल्‍लाह फरमाते हैं: महिलाएं अपनी दाएं हथेली को बाएं हथेली के पीठ पर मारे ।


• इससे एक लाभ यह प्राप्‍त होता है कि:नमाज़ को प्रथम समय में ही पढ़ना चाहिए।


• इस घटने से अबू बकर रज़ीअल्‍लाहु अंहु के अनेक सदगूणका पता चलता है।


अल्‍लाह तआ़ला मुझे और आप को क़ुर्रान व ह़दीस की बरकत से लाभान्वित फरमाए,और उन में हिदायात व रह़मत की जो बातें हैं,उनसे हमें लाभ पहुंचाए,आप सब अल्‍लाह से क्षमा मांगें,नि:संदेह वह अति क्षमा करने वाला है।


द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चात:

इस महान फर्ज़ प्रार्थना को जमाअ़त (समूह) के साथ पढ़ने से संबंधित एक महत्‍वपूर्ण बात यह भी है कि सफों (पंक्तियों) को सही रखा जाए वह इस प्रकार से कि सारे मो‍सल्‍ली (नमाज़ी) संयमके साथ ए‍क ही ढ़ग से खड़े हों,वर्तमानकाल में इस पर अ़मल करना समोसल्‍ला (नमाज़ की चटाई) के कारण अधिक आसान हो गया है, الحمد لله

 

नोमान बिन बशीर रज़ीअल्‍लाहु अंहु फरमाते हैं: अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम हमारी सफों (पंक्तियों) को इतना सीधा और बराबर कराते थे माने आप उनके द्वारा तीरों को सीधा कर रहे हैं,यहां तक कि आप को विश्‍वास हो गया कि हम ने आप से इस बात को अच्‍छे से समझ लिया है तो उसके पश्‍चात एक दिन आप घर से निकल कर बाहर आए और नमाज़ पढ़ाने के स्‍थान पर खड़े हो गए और समीप था कि आप तकबीर कहें और नमाज़ आरंभ करदें कि आप ने एक व्‍यक्ति को देखा उसका सीना पंक्ति से आगे निकला हुआ था,आप ने फरमाया: अल्‍लाह के बंदो तुम अवश्‍य ही अपनी पंक्तियों को सीधी करो वरना अल्‍लाह तुम्‍हारे रुख एक दूसरे के विरुद्ध मोड़ देगा ।इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।


आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने फरमाया: अपनी पंक्तियों को बराबर किया करो क्‍योंकि पंक्तियों को बराबर करना नमाज़ की पूर्णताका भाग है ।इसे मस्लिम ने रिवायत किया है।


बोखारी के शब्‍द सफों को सीधी रखने के विषय में अधिक बलपूर्वक हैं: सफों को बराबर करो क्‍योंकि सफों का बराबर करना नमाज़ को स्‍थापित करना है ।


सफों को बराबर करने के विशय में एक बात यह भी है कि सफ में मौजूद जगहको दूर किया जाए।यह भी देखा जाता है कि कुछ नमाज़ी-अल्‍लाह उन्‍हें हिदायत दे-दूसरी सफ में खड़े हो जाते हैं जबकि प्रथम सफ में स्‍थान बची होती है,बल्कि कभी क‍भी तो उूपर की दो-तीन सफें खाली होती हैं और लोग नीचे सफ बनाते जाते हैं।इसका ध्‍यान रखना चाहिए।


अल्‍लाह के बंदे उूपर की पंक्तियों में नमाज़ पढ़ें,अबूहोरैरा रज़ीअल्‍लाहु अंहु से वर्णित है कि नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने फरमाया: यदि तुम जान लो अथावा लोग जान लें कि प्रथम सफ में कितनी सदगूणहै तो उस पर टॉसहो ।इसे मस्लिम ने रिवायत किया है।


आप कल्‍पना करें कि यह कितनी बड़ी सदगूणहै कि यदि लोग इसे जान लें तो उस पर टॅासकरने लगें और उसे छोड़ने के लिए तैयार न हों।


ईमानी भाइयो नमाज़ एक सर्वोत्‍तम प्रार्थना है,इसकी बहुत फजीलतें आई हैं,बल्कि स्‍वयं नमाज़ के अतिरिक्‍त और इससे पूर्व एवं पश्‍चात के अ़मलों की भी फजीलतें हैं।


अंतिम बात:अल्‍लाह के बंदे इब्राहीम खलीलुल्‍लाह की यह दुआ़ अधिक से अधिक पढ़ा करें:

﴿ رَبِّ اجْعَلْنِي مُقِيمَ الصَّلاَةِ وَمِن ذُرِّيَّتِي رَبَّنَا وَتَقَبَّلْ دُعَاء ﴾ [إبراهيم: 40]

अर्थात:मेरे पालनहार मुझे नमाज़ की स्‍थापना करने वाला बना दे,तथा मेरी संतान को,हे मेरे पालनहार और मेरी प्रार्थना स्‍वीकार कर।

 

https://www.alukah.net/sharia/0/108627/





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • صلاة بأعظم إمامين
  • صلاة بأعظم إمامين (باللغة الأردية)

مختارات من الشبكة

  • أسباب التوفيق(مقالة - آفاق الشريعة)
  • حالات صفة صلاة الوتر على المذهب الحنبلي(مقالة - آفاق الشريعة)
  • أحكام سلس البول(مقالة - آفاق الشريعة)
  • صلوا عليه وسلموا تسليما(مقالة - آفاق الشريعة)
  • مواقيت الصلوات: الفرع الخامس: وقت الفجر(مقالة - آفاق الشريعة)
  • أركان الصلاة(مقالة - آفاق الشريعة)
  • أوقات النهي عن الصلاة (درس 2)(مقالة - موقع د. أمين بن عبدالله الشقاوي)
  • مواقيت الصلوات: الفرع الرابع: وقت صلاة العشاء(مقالة - آفاق الشريعة)
  • فضل الأذكار بعد صلاة الصبح(مقالة - آفاق الشريعة)
  • فضل ذكر الله بعد صلاة الفجر حتى تطلع الشمس(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • مبادرة "زوروا مسجدي 2025" تجمع أكثر من 150 مسجدا بمختلف أنحاء بريطانيا
  • متطوعو كواد سيتيز المسلمون يدعمون آلاف المحتاجين
  • مسلمون يخططون لتشييد مسجد حديث الطراز شمال سان أنطونيو
  • شبكة الألوكة تعزي المملكة العربية السعودية حكومة وشعبا في وفاة سماحة مفتي عام المملكة
  • برنامج تعليمي إسلامي شامل لمدة ثلاث سنوات في مساجد تتارستان
  • اختتام الدورة العلمية الشرعية الثالثة للأئمة والخطباء بعاصمة ألبانيا
  • مدرسة إسلامية جديدة في مدينة صوفيا مع بداية العام الدراسي
  • ندوة علمية حول دور الذكاء الاصطناعي في تحسين الإنتاجية بمدينة سراييفو

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 7/4/1447هـ - الساعة: 22:10
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب